SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) कहूँगा कि नहीं, जानवरों को ये विषय बिल्कुल पसंद नहीं हैं लेकिन फिर भी उन्हें 'नैचुरल' उत्तेजना होती है। बाकी, इस विषय को तो कोई पसंद ही नहीं करे। सच्चा पुरुष हो तो पसंद ही न करे। तो ये मनुष्य क्यों इस विषय में पड़ते हैं? क्योंकि पूरे दिन भागदौड़, भागदौड़ करता है। थका हुआ होता है इसलिए उसे भान नहीं रहता कि यह कीचड़ है, इसलिए फिर पड़ जाता है उसमें। बाकी, जब बिल्कुल ही 'सेन्स' खत्म हो जाए तब यह कीचड़ याद आता है। वर्ना ‘सेन्सिबल' इंसान को तो यह कीचड़ अच्छा ही नहीं लगेगा न! यह तो भागदौड़ की मेहनत और उसकी जलन है, उसका शमन करने के लिए इस कीचड़ में गिरता है। गड्ढे में गिरने से यह जलन कहीं शांत नहीं हो जाती। थोड़ाबहुत संतोष महसूस होता है, बस उतना ही और नींद आ जाती है। बाकी, उसके बाद तो मरने जैसा लगता है। इस विषय के कीचड़ से ज़्यादा तो बांद्रा की खाड़ी का कीचड़ अच्छा है। सिर्फ दुर्गंध आती है, उतना ही है। बाकी कुछ नहीं। जबकि यह तो बेहद दुर्गंध है और निरे कितने ही जीव मर जाते हैं, लेकिन भान नहीं है और ऊपर से कहता है कि, 'मैं जैन हूँ।' अरे, जैन तो ऐसा नहीं होता। इसमें तो करोड़ों जीव खत्म हो जाते हैं! ऐसा है, निर्विषय विषय किसे कहा गया है? इस जगत् में निर्विषयी विषय हैं। इस शरीर की ज़रूरत के लिए जो कुछ दालचावल-सब्जी-रोटी, जो कुछ मिले वह खाओ। वह विषय नहीं है। विषय कब कहा जाता है? कि जब तुम लुब्धमान हो जाओ तब विषय कहलाता है, वर्ना वह विषय नहीं है, वह निर्विषयी विषय है। अतः जो कुछ इस जगत् में आँखों से दिखाई देता है, वह सारा विषय नहीं है। लुब्धमान हो जाए, तभी विषय है। हमें कोई विषय छूता ही नहीं। विषय की ज़रूरत क्या है, यही मैं नहीं समझ पाता। ये जानवर भी जिससे तंग आ चुके हैं, उसी विषय में मनुष्यों को मज़ा आता है, यह कैसा आश्चर्य है?! क्यों इस कीचड़ में फँसता है, इसका विचार ही नहीं आता, ऐसे 'ब्लंट' हो गए है!
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy