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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पूर्वार्ध) खंड : १ विषय का स्वरूप, ज्ञानी की दृष्टि से [१] विश्लेषण, विषय के स्वरूप का कीचड़ में ठंडक का मज़ा मनुष्य होकर भी इस पाँच इन्द्रियों के कीचड़ में क्यों पड़ा है, वही आश्चर्य है! भयंकर कीचड़ है यह तो ! लेकिन इतना नहीं समझने से, जगत् अभानता में चल रहा है। यदि थोड़ा सा सोचे तब भी, ऐसा समझ में आ सकता है कि कीचड़ है लेकिन लोग सोचते ही नहीं है न? ! निरा कीचड़ है । तो मनुष्य क्यों ऐसे कीचड़ में पड़े हुए हैं? तो इसलिए कि ' और किसी जगह पर साफसुथरा नहीं मिलता। इसलिए ऐसे कीचड़ में सो गया है।' प्रश्नकर्ता : यानी कीचड़ के प्रति अज्ञानता ही है न ? दादाश्री : हाँ, उसके प्रति अज्ञानता है । इसीलिए कीचड़ में पड़ा है। फिर यदि इसे समझने का प्रयत्न करे तो समझ में आए ऐसा है, लेकिन खुद समझने का प्रयत्न ही नहीं करता न ! कोई पूछे कि क्या जानवरों को ये विषय प्रिय हैं ? तो मैं
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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