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________________ विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1) इसलिए भगवान महावीर ने पाँचवाँ महाव्रत, ब्रह्मचर्य का दिया कि आज के मनुष्यों को विषय के कीचड़ का भान ही नहीं रहेगा, इसलिए जो चार महाव्रत थे, उसके पाँच कर दिए। उनके मन में यह था कि लोग थोड़ा-बहुत सोचेंगे और इसकी जोखिमदारी समझेंगे। यह तो भयंकर विकृति है। इसके बजाय तो नर्क का दुःख अच्छा, नर्क की वेदना अच्छी, लेकिन यह वेदना तो बहुत भयंकर है! मुझसे कुछ लोग कहते हैं कि, 'इस विषय में ऐसा क्या है कि विषयसुख चखने के बाद मैं मरणतुल्य हो जाता हूँ, मेरा मन मर जाता है, वाणी मर जाती है?' मैंने कहा कि, ये सब मरे हुए ही हैं, लेकिन आपको भान नहीं आता और वापस वही की वही दशा उत्पन्न हो जाती है। वर्ना ब्रह्मचर्य यदि संभल जाए तो एक-एक मनुष्य में तो कितनी शक्ति है! आत्मा के ज्ञान में रहना, उसे समयसार कहते हैं। आत्माज्ञान प्राप्त करे और जागृति रहे तो समय का सार उत्पन्न होता है और ब्रह्मचर्य, वह पुद्गलसार (जो पूरण और गलन होता है) है। अतः इस विषय में तो एक दिन भी नहीं बिगाड़ना चाहिए। वह तो जंगली अवस्था कहलाती मन, वचन, काया से ब्रह्मचर्य पालन करे तो कितना अच्छा मनोबल रहेगा, कितना अच्छा वचनबल रहेगा और कितना अच्छा देहबल रहेगा! अपने यहाँ भगवान महावीर के समय तक कैसा व्यवहार था? एक-दो बच्चों तक 'व्यवहार' रखते थे लेकिन इस काल में वह व्यवहार बिगड़ जाएगा, ऐसा भगवान जानते थे, इसलिए उन्हें पाँचवाँ महाव्रत देना पड़ा। इस ज़हर को जहर जाना? विषय को ज़हर समझा ही नहीं। ज़हर समझे तो उसे छूएगा ही नहीं न! इसलिए भगवान ने कहा है कि ज्ञान का फल है
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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