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________________ [१४] २९९ व्रत की विधि से, टूटते हैं.... ३५७ ३०२ साधना, ‘संयमी' के संग ३५९ नहीं डालना चाहिए दबाव... ३५४ ब्रह्मचर्य प्राप्त करवाए ब्रह्मांड का आनंदराजा-रानी का तलाक, शादी..... ३५५ इससे क्या नहीं मिल सकता ? समझो गंभीरता, ब्रह्मचर्य व्रत... आजीवन ब्रह्मचर्य, शुरू करवाए... चारित्र का सुख कैसा बरते फायदा उठाएँ या नुकसान रोकें ? [१५] ३०३ अक्रम में ऐसे आश्रम की .... ३६१ ब्रह्मचर्य के बिना नहीं जा... ३६२ ३६४ ३६५ ३६८ ३६९ ३७० ३७१ ३७२ ३७४ ३७५ ३७८ ३८० ३८३ ३८८ ३०६ ३०८ दोनों में से उच्च कौन सा ? चारित्रबल से कांपती हैं स्त्रियाँ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति आकर्षण के सामने चाहिए ... पूर्व में चूके, उसके ये फल हैं वहाँ पर देखो शुद्धात्मा ही पुद्गल का स्वभाव ज्ञान से.... दृष्टि निर्मल कर सकते हैं ऐसे विचार ध्यान में तो परिवर्तित ... देखने से पिघलें, गाँठें विषय ‘देखना’' 'जानना' आत्मस्वरूप से जहाँ जागृति में झोंका, वहाँ अंत में तो आत्मरूप ही ... [ १६ ] *** फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते सिर - माथे पर रखना ज्ञानी को .... जानो गुनाह के फल को पहले व्यापार में खो गए कि खोए ... एक ध्येय, एक ही भाव जिस राह पर चले, बताई 'दादा' बोलते ही दादा हाज़िर ध्येयी का हाथ थामें, दादा... ज्ञानी मिटाए अनंतकाल के रोग [ १७ ] अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक बिना निराई किए हुए खेत ३४८ नूर झलकता है ब्रह्मचर्य का ३५० ३५१ ३५३ ३११ ३१४ ३१६ ३१७ ३१८ ३२० ३२१ ३२६ ३२८ ३३१ बगड़े सपने के भोग का पूर्वापर... 'दादावाणी निकली ब्रह्मचारियों... ब्रह्मचर्य का एक और..... दृष्टि से ही बिगड़ता है.... किसी की बहन पर दृष्टि.... ३३४ ३३५ ३३७ ३४० ३४१ ३४३ ३४३ ३४६ प्रतिक्रमण ही एक उपाय कैसा मोह, कि शौक से .... 'जवानी' सँभल जाए तो आनंद की अनुभूति वहाँ व्यवहार गढ़ता है ब्रह्मचारियों .... निश्चय के साथ में वचनबल.... इसमें कर्मबंधन के नियम हैं ब्रह्मचर्य, चार्ज या डिस्चार्ज ? विषय टूटे, विरोधी बनने पर आलोचना, आप्तपुरुष से ही अब तो उधार चुका दो वह पाए परमात्म पद [१८] 52 ३९० ३९१ ३९५ ३९७ ३९७ ४०२ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को मोह ढक देता है जागृति को ३९९ शादी करने का आधार निश्चय... दोष, आँखों का या अज्ञानता... इस विवाह संबंध के स्वरूप... आकर्षण कुछ के प्रति ही... ऐसी 'समझ' कौन देगा ? ४०३ ४११ ४१२ ४२० कल्याण करना है या कल्याण.... ४२३
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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