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________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७) ३७९ कि जिसके आधार पर दुनिया खड़ी है, जिसकी वजह से ध्यान फ्रैक्चर हो जाता है, उनके लिए वह आधार रहता ही नहीं। एक ही बार अगर अब्रह्मचर्य का भाव उत्पन्न हो तो वह तीन-तीन दिनों तक ध्यान नहीं होने देता। फिर आत्मा का मूल्य समझ में आएगा क्या? और इन ब्रह्मचर्य व्रतवालों को तो, यह ज्ञान है इसलिए आत्मा का आनंद तो पाया, लेकिन वह आनंद इस व्रत की वजह से टिका हुआ है। फिर वह आनंद जाता ही नहीं। ये लोग बारहबारह महीनों का व्रत लेकर फिर यह अनुभव कर जाते हैं। फिर वापस आकर मुझ से क्या कहते हैं कि 'दादा, हम जो आनंद भोग रहे है, वह ग़ज़ब का आनंद है। एक क्षण भी कुछ नहीं होता।' कहना पड़ेगा! ब्रह्मचर्य की इतनी पहुँच है, ऐसा तो मुझे भी पता नहीं था। प्रश्नकर्ता : आपके पास भी वही था न? दादाश्री : नहीं, लेकिन मुझे यह पता नहीं था कि इसकी पहुँच इतनी अधिक है। मैं नहीं जानता था कि इस लड़के को इतना आनंद बर्तता है और वह भी ब्रह्मचर्य की वजह से! क्योंकि ज्ञान तो सभी को दिया है और आत्मा का आनंद भी उत्पन्न हुआ है, लेकिन अब कौन इस आनंद को स्पर्श नहीं होने देता? विषयभाव, पाशवता। प्रश्नकर्ता : ये जो बाहरवाले लोग ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, उन्हें ऐसा आनंद नहीं होता न? दादाश्री : उन्हें आत्मा का आनंद नहीं होता। उन्हें तो पौद्गलिक आनंद उत्पन्न होता है और वहाँ तो पौद्गलिक आनंद को ही आत्मा का आनंद माना जाता है। फिर भी उससे उन्हें आनंद रहता है। भीतर जो क्लेश का वातावरण उत्पन्न करे, वैसा सब नहीं होता क्योंकि उनके हाथ में पुद्गलसार आ गया न! ब्रह्मचर्य मतलब पुद्गलसार और अध्यात्मसार मतलब शुद्धात्मा। और जिसे
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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