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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) ये दोनों मिल जाएँ, उसका तो कल्याण ही हो गया न! लेकिन जिसके पास सिर्फ पुद्गलसार हो तो उसे भी थोड़ा-बहुत आनंद तो आएगा न? इस ब्रह्मचर्य के बल के सामने, उसे अन्य वृत्तियाँ परेशान नहीं करती । प्रश्नकर्ता : उन ब्रह्मचारियों को कषाय परेशान नहीं करते ? दादाश्री : नहीं करते। ब्रह्मचारी कभी भी चिढ़ते ही नहीं । जो संसारी ब्रह्मचारी होते हैं, वे भी कभी नहीं चिढ़ते । उनका चेहरा देखने से भी आनंद होता है । ब्रह्मचर्य का तो तेज आता है। तेज नहीं आए तो ब्रह्मचर्य कैसा ? अतः यदि संसार में भी ब्रह्मचर्य मानना हो तो किसका मानना कि जिनके चेहरे पर तेज हो । ब्रह्मचारी पुरुष तो तेजवान होते हैं। ३८० ब्रह्मचर्य आत्मा के स्वभाविक गुणों को प्रकट होने देता है, आत्मा का अनुभव होने देता है, सभी गुणों का अनुभव होने देता है। जबकि अब्रह्मचर्य के भाव की वजह से आत्मा के सभी गुणों का अनुभव होने के बावजूद भी ऐसा लगता है अनुभव नहीं हुआ है। स्थिरता नहीं रहती । 'इस' एक चीज़ में अनुकूलता आ गई तो सभी में अनुकूलता आ जाती है। सबकुछ अनुकूल हो जाता है। व्यवहार गढ़ता है ब्रह्मचारियों को इन ब्रह्मचारियों की सभी पीड़ा ही मिट गई न, फिर भी उन्हें व्यवहार सीखने में बहुत टाइम लगेगा । व्यवहारिकता आनी चाहिए न? आत्मा जाना लेकिन वह व्यवहार समेत होना चाहिए। सिर्फ खुद का कल्याण हो गया, उससे क्या फर्क पड़ा ? ये लोग तो कहते हैं कि 'हमें तो जगत् कल्याण में दादा का पूरा-पूरा साथ देना है।' इसलिए ये ब्रह्मचर्य पालन कर रहे हैं। यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था, ऐसा नया ही अंकुर फूटा है। मैं तो ऐसा समझता था कि इस काल में ब्रह्मचर्य रह ही
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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