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________________ ३७८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हो, लेकिन अभी तुम्हारा रिज पॉइन्ट आना बाकी है। अभी तो तुम्हारी जवानी भी नहीं खिली है इसलिए बहुत कठिनाईयाँ आएगी। फिर भी मैंने ऐसा रास्ता दिखाया है कि आरपार निकल जाएँ और यदि उस रास्ते पर जाएँ तो आरपार निकल भी जाएँ। ऐसा विज़न तो किसी के पास भी नहीं है क्योंकि इस तरफ का, इस शरीर के बारे में सोचा ही नहीं होता न? ऐसा मानते हैं कि 'यह मैं ही हूँ' इसीलिए तो किसी को खुद के दोष नहीं दिखते। जहाँ स्थूल दोष ही नहीं दिखते, वहाँ पर, विषय के सामने तो कितनी सूक्ष्म जागृति की ज़रूरत है?! वह कैसे आएगी? यानी किसीने इसका केल्क्युलेशन किया ही नहीं न! यह अपना सत्संग, ये बातें, ऐसी चीज़ है जो कभी भी सुनने में नहीं आए। यह सत्संग तो बुद्धि से परे वाला कहलाता है। बुद्धि का सत्संग तो हर कहीं होता है। आनंद की अनुभूति वहाँ ___'अक्रम विज्ञान' में मैंने कुछ परिवर्तन नहीं किया है। लेकिन लोग 'अक्रम विज्ञान' को समझ नहीं सके हैं। अनादि से लोग क्रमिक के ही अभ्यस्त हैं। वर्ना पूर्णता तक का काम हो जाए, ऐसा यह विज्ञान है। अक्रम विज्ञान को कब समझा जा सकता है? कि जो विषय के वैराग्यवाला हो और उसे 'अक्रम विज्ञान' मिल जाए, फिर तो उसका कल्याण ही हो गया न?! जिसे विषय अच्छे ही नहीं लगते, वह तो उच्च स्थिति कहलाती है। जैनों में भी जो उच्च स्थिति तक पहुँचे हुए होते हैं, वही वैराग्य लेते हैं। उन्हें तो बचपन से ही कुछ अच्छा नहीं लगता। उन्हें तो विषय की बात सुनते ही कंपकंपी आ जाती है। डेवेलप परिवार की जो बीस-बीस साल की लड़कियाँ और बीस-बीस साल के लड़के होते हैं, उन से विषय की बात की जाए तो उन्हें तो कंपकंपी आ जाती है। यह ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद उनका वह आनंद जाता ही नहीं है। अपार आनंद में रहते हैं क्योंकि मूल विषय
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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