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________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७) ३६९ हैं! वर्ना ऐसा आश्चर्य मिल ही नहीं सकता न कभी भी! ब्रह्मचर्य का एक और अब्रह्मचर्य के अनेक दुःख प्रश्नकर्ता : लेकिन यह ब्रह्मचर्य, वह कुछ खाने के खेल नहीं हैं। दादाश्री : ब्रह्मचर्य कुछ खाने के खेल नहीं हैं, तो अब्रह्मचर्य भी खाने के खेल नहीं हैं। अब्रह्मचर्य की जो पीड़ा है न, ब्रह्मचर्य में उसके बजाय बहुत कम पीड़ा है। ब्रह्मचर्य में एक ही प्रकार की पीड़ा है कि विषय की ओर ध्यान ही नहीं देना है। प्रश्नकर्ता : लेकिन इस पीड़ा से सुख तो बहुत उत्पन्न होता है। यदि इतना संभाल लिया कि उस ओर ध्यान ही न दे, तो पीड़ा के बजाय अंदर सुख उत्पन्न होगा। दादाश्री : उसमें तो स्वभाविक रूप से सुख ही उत्पन्न होगा लेकिन उस पर ध्यान नहीं देने के लिए विषय का विचार आने से पहले ही उखाड़ दे और प्रतिक्रमण करके पूरा एक्जेक्टनेस में रहना पड़ता है। खेत में बीज पड़ने ही नहीं देंगे तो उगेगा ही कैसे? तेरा अंदर ठीक रहता है या बिगड़ गया है? पूरा ही बिगड़ गया है? थोड़ा-थोड़ा? तो अब कुछ सुधार कर ले! विषय के ये दुःख तो तुझसे सहन नहीं होंगे। यह तो मोटी खालवाले लोग हैं कि जो सहन कर सकते हैं, वे यातनाएँ। बाकी तू तो पतली खालवाला है, तो कैसे वे यातनाएँ सहन कर सकेगा? । प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि बीज डल जाए और पेड़ बन जाए तो क्या करेगा? फिर फल खाना ही पड़ेगा न? । दादाश्री : नहीं, लेकिन यह तो उन से कह रहा हूँ जो सावधान हो चुके है। प्रश्नकर्ता : लेकिन जो लोग संसार में हैं, उसे बीज पड़ गया और पेड़ बन गया तो?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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