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________________ ३६८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादावाणी निकली ब्रह्मचारियों के लिए बाकी विषय तो भयंकर दुःख और यातनाएँ ही है सिर्फ ! फिर, जो चित्त है, वह पूरे दिन भटक, भटक, भटक करता रहता है। कमज़ोर पड़ जाता है, ढीला पड़ जाता है। तेरा ऐसे ढीला पड़ जाता है क्या ? प्रश्नकर्ता : कभी कभार ऐसा हो जाता है। दादाश्री : कभी कभार होता है न ? लेकिन पूरे दिन, हमेशा के लिए तो नहीं न? तो काम हो गया। जिसने नियम ही लिया है कि मुझे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना ही है, तो उसमें अगर लीकेज होने पर भी भगवान उसे लेट गो करते हैं। कुदरत का न्याय लेट गो करता है और अगर सभी ब्रह्मचारी एक साथ रहें तो ब्रह्मचर्य टिक सकता है। वर्ना अगर यहाँ शहर में अकेला रहे तो उसका ब्रह्मचर्य टिकेगा ही नहीं न। प्रश्नकर्ता : लेकिन खरा तो वही कहलाएगा न ? I दादाश्री : वह खरा तो कहलाएगा लेकिन इतना टेस्टेड तो इस काल में कोई है नहीं न! वैसा टेस्टिंग तो ज्ञानीपुरुष के अलावा अन्य कोई नहीं दे सकता । ज्ञानीपुरुष को तो 'ओपन टु स्काय' ही होता है। रात में कभी भी उनके वहाँ जाओ, फिर भी ओपन टु स्काय होते हैं । हमें तो ब्रह्मचर्य पालन करना पड़े ऐसा भी नहीं होता । हमें तो विषय याद ही नहीं आता । इस शरीर में वह परमाणु ही नहीं हैं न । तभी तो ब्रह्मचर्य संबंधित ऐसी वाणी निकलती है न! विषय के सामने तो कोई बोला ही नहीं है। लोग विषयी हैं, इसलिए लोगों ने विषय पर उपदेश ही नहीं दिया, और अपने यहाँ तो ब्रह्मचर्य पर इतना कहा है कि पूरी किताब बन सके, और ठेठ तक की बात कही हैं क्योंकि हम में तो वे परमाणु ही खत्म हो चुके हैं, हम देह से बाहर रहते हैं। बाहर यानी निरंतर पड़ोसी की तरह रहते
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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