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________________ ३७० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : उसका तो कोई उपाय ही नहीं है न! प्रश्नकर्ता : फिर फल खाना ही पड़ेगा न ? दादाश्री : फल खाए लेकिन पछतावे के साथ खाए, तो उस फल में से वापस बीज नहीं डलेंगे और खुशी से खाए कि, 'हाँ, आज तो बहुत मज़ा आया' तो वापस बीज डलेगा। बाकी इसमें तो आदी हो जाता है। ज़रा भी ढीला छोड़ा कि वहाँ आदी हो जाता है इसलिए ढीला मत छोड़ना । मज़बूत रहना। मर जाऊँ फिर भी यह नहीं चाहिए। इतना मज़बूत रहना चाहिए। दृष्टि से ही बिगड़ता है, ब्रह्मचर्य ये लड़के हमारी बात का दुरुपयोग करेंगे, इसलिए हम ज्ञान की एक्ज़ेक्ट बात नहीं बताते। हमने तो ज्ञान में सबकुछ देखा हुआ है, लेकिन एक्ज़ेक्ट कह नहीं सकते क्योंकि यह अक्रम विज्ञान है और कर्म खपाए बिना का है। कर्म नहीं खपाए हैं इसलिए एक ओर ज़बरदस्त ज़ोर है, उसकी वजह से फिर मन मुड़ जाता है। इस बात का दुरुपयोग करने जाएगा तो मारा जाएगा। यह सारी छूट तो इसलिए दे रखी है ताकि आप डरो नहीं। खाना आराम से। इस-इस तरह का ब्रह्मचर्य पालन करे तो भी बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : इससे तो बहुत बड़ा 'ब्रेक' आ जाता है न? दादाश्री : हाँ, बड़ा 'ब्रेक' आ जाता है। हम चारित्र के बारे में बहुत सख्ती रखते हैं । फिर अगर 'व्यवस्थित' में शादी होगी, तो उसे कोई बाप भी नहीं छोड़नेवाला । वह मैं समझता हूँ न ?! लेकिन अगर अभी चारित्र में रहेगा तो उनकी लाइफ सुधर जाएगी और शायद शादी कर ली तो भी बाद में दूसरों पर आँखें नहीं गड़ाएगा न ? ! मोक्ष जाने में कुछ बाधक हो तो वह सिर्फ स्त्री विषय
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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