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________________ अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं-2-१७) । ३६७ दादाश्री : सत्संग के अलावा तो और कोई उपाय नहीं है। कुसंग से ही ये सारी वृत्तियाँ ऐसी हो जाती है, और दूसरा, विषयों में यदि कभी तरछोड़ (तिरस्कार सहित दुत्कारना) मिली हो न, तब तो उसे पूरे दिन विषय के ही विचार आते रहते हैं। इसलिए हमने कहा है न, कि एक से शादी करना ताकि वृत्तियाँ शांत हो जाएँ। बाकी तरछोड़ खाया हुआ इंसान तो सभी ओर ताकता रहता है। वह मनुष्य की स्त्री को तो देखता ही है लेकिन तिर्यंच की स्त्री को भी देखता है, और निरीक्षण भी करता है। प्रश्नकर्ता : उपवास करने से तो उसकी वृत्तियाँ हमेशा संयम में रहेंगी, इस बात में कोई सच्चाई है? दादाश्री : हाँ, रहती है लेकिन वह तो उसके संयम पर आधारित है, उसके संस्कार पर आधारित है। प्रश्नकर्ता : संस्कार तो गढ़ना पड़ेगा न, क्योंकि अगर पिछले जन्म का कुछ भी लेकर नहीं आया हो तो? दादाश्री : नहीं अगर वह संयम लेकर आया होगा न. तो जब वह उपवास करे, तब आप उसे जलेबी वगैरह दिखाओ, फिर भी उसका चित्त उनमें नहीं जाएगा, ऐसे भी लोग है। प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसे पूर्व के उदय तो महान पुरुष ही लेकर आते हैं, लेकिन सामान्य लोगों के लिए कुछ नहीं हो सकता? दादाश्री : सामान्य लोगों की तो बिसात ही नहीं न! सामान्य लोगों की क्या बिसात? | प्रश्नकर्ता : तो सत्संग से उसमें कुछ जागृति आएगी? दादाश्री : हाँ, सत्संग में आए, रोज़ पड़ा रहे इस सत्संग में, तब उसका पूरा होगा। उसका उपाय ही सत्संग, सत्संग और सत्संग है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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