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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) लेना है। आप ऐसा डिसीज़न लेते हो कि आप सभी को समाधान रहे। उसके बाद हम हेल्प करते हैं। आप जिस लाइन में हो, उस लाइन में हेल्प करते हैं । एक से शादी की होगी, फिर भी हमें हर्ज नहीं और शादी नहीं करोगे फिर भी हर्ज नहीं है। लेकिन आप सभी का डिसीज़न समाधानपूर्वक होना चाहिए। नहीं तो फिर हमारे लिए सभी की शिकायत आएगी, और हमारे लिए जिस इंसान की शिकायत आएगी, तो उस इंसान को हमारे लिए अभाव हो जाएगा तो उसका बिगड़ेगा । इसलिए मैं इन सब चीज़ों में नहीं पड़ता। सामनेवाले का बिगड़ेगा तो उसकी ज़िम्मेदारी मेरी है। लेकिन अगर मुझ पर ज़रा भी अभाव आए तो उसका क्या होगा ? इसलिए हम कुछ नियमसहित ही रहते हैं । हम नियम से बाहर नहीं जाते। नियम से बाहर हम नहीं चलते। उसके जो लॉ हैं, वही लॉ है, उसी में रहना पड़ता है । ३४४ मन-वचन-काया, भावकर्म- द्रव्यकर्म-नोकर्म, सबकुछ दादा को अर्पण करके, ‘मैं अनंत शक्तिवाला हूँ, मैं अनंत ब्रह्मचर्य शक्तिवाला हूँ' ऐसा सब बोल सकते हो। क्योंकि इस विषय में से पार निकलना, यह उम्र गुजारना, यह सब बहुत मुश्किल है। दादा तो, अगर तुम्हें इस तरफ जाना हो तो उसमें मदद करेंगे और शादी करनी हो तो शादी में मदद करेंगे। दादा को इसमें कुछ लेना देना नहीं है। तुम अपना तय करो! तुम में क्या माल भरा हुआ है? मैं कहाँ गहराई में उतरूँ और मेरे पास इतना टाइम भी नहीं है। इसलिए तेरी दुकान का माल तुझे पहचानना है। यानी कि सभी को अपने आप समझ लेना है। मैं क्या कहता हूँ कि शादी करने पर भी तुम्हारा मोक्ष चला नहीं जाएगा। शादी नहीं करनी हो तो यह निश्चय मज़बूत करो और इसमें स्ट्रोंग रहो। दो में से एक ओर की एक्ज़ेक्टनेस पर आ जाना चाहिए। वर्ना बाकी सब में तो टकराव होगा। जो भी विचार आएँ, उन सभी विचारों को देखना। अच्छेबुरे विचार तो आते ही हैं ! जो भरे हैं, वही आते हैं, और जितने
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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