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________________ फिसलनेवालों को उठाकर दौड़ाते हैं (खं-2-१६) ३४३ 'दादा' बोलते ही दादा हाज़िर प्रश्नकर्ता : आपकी मौजूदगी में यह सब बिल्कुल साफ हो जाए, सभी को ऐसे आशीर्वाद दीजिएगा। दादाश्री : हम तो ऐसे आशीर्वाद देते हैं। लेकिन यह तो साफ करोगे तब न! प्रश्नकर्ता : साफ कर देंगे। दादाश्री : तुम्हें तो अपना काम निकाल लेना है। इसी की पूर्णाहुति के लिए शरीर घिस देना है। यदि ये कर्म खपा दिए होते और उसके बाद यह ज्ञान मिला होता तो एक घंटे में ही उसका काम पूर्ण हो जाता लेकिन ये कर्म तो खपाए नहीं हैं और राह चलते को ज्ञान दे दिया है इसलिए अंदर जब कर्म के उदय बदलते हैं, तब बुद्धि के प्रकाश को पलट देते हैं, उस समय उलझ जाता है। अब उलझ जाए, तब 'दादा' 'दादा' करते रहना और कहना, 'यह लश्कर उलझाने आया है।' क्योंकि अभी भी ऐसे उलझानेवाले अंदर बैठे है, इसलिए सावधान रहना। और उस समय 'ज्ञानीपुरुष' का ज़बरदस्त आसरा रखना। मुश्किलें तो न जाने कब आ जाएँ, वह कहा नहीं जा सकता। लेकिन उस समय 'दादा' से सहायता माँगना। ज़जीर खींचोगे तो 'दादा' हाज़िर हो जाएँगे। अब तो एक क्षण भी गँवाने जैसा नहीं है। ऐसा अवसर बार-बार नहीं आएगा, इसलिए काम निकाल लेना चाहिए। इसलिए यदि यहाँ पर जागृति रखी तो सभी कर्म भस्मीभूत हो जाएँगे और एक अवतारी होकर मोक्ष में चले जाओगे। मोक्ष तो सरल है, सहज है, सुगम है। ध्येयी का हाथ थामें, दादा हमेशा __ मैं आपकी हेल्प करता हूँ, बाकी डिसीज़न आपको लेना है। आप सभी को, फादर-मदर और बच्चों को समाधान सहित डिसीज़न
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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