SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) फरियाद करनेवाला है, इसलिए सावधान रहना। हम चेतावनी देते प्रश्नकर्ता : यही गड़बड़ हो जाती है न! वहाँ पर देखो शुद्धात्मा ही दादाश्री : तो तू सावधानी नहीं रखता? प्रश्नकर्ता : सावधानी तो रखता हूँ न, लेकिन यह तो निरंतर सावधान रहना है। दादाश्री : फिर भी जहाँ पर हमें आकृष्ट नहीं होना हो, उसके बावजूद भी आकर्षण होता रहे तो वह पहले की, पिछले जन्म की गलती है, इतना तय हो गया। नये सिरे से आकर्षण हो, वह चीज़ हमें समझ में आती है कि यदि हमें नहीं देखना है तो देखें ही नहीं, ऐसा होना चाहिए। लेकिन यह तो पुराना है, इसलिए वहाँ तो हमें नहीं देखना हो फिर भी खिंच जाते हैं। प्रश्नकर्ता : इस जगह पर पुरुषार्थ करना है। जागृति रखना, वही पुरुषार्थ है? दादाश्री : हाँ, वैसी जागृति रखना। तू रखता है, इतनी जागृति ? प्रश्नकर्ता : वहीं पर पुरुषार्थ है पूरा।। दादाश्री : ऐसा?! तुझे समझ में आता है कि यह पिछले जन्म की गलती है, ऐसा? क्या आता है समझ में? तुझे ऐसा अनुभव हुआ है? प्रश्नकर्ता : हाँ, मतलब खुद की जागृति है कि यह दोष हुआ। अब उसे धोकर खुद तैयार हो जाए, खुद उससे मुक्त हो जाए लेकिन फिर से सरकमस्टेन्शिअल एविडेन्स मिल जाए, निमित्त मिल जाए तो फिर वापस विषय की गाँठ फूटती ही है। खुद की ज़बरदस्त तैयारी हो कि उपयोग चूकना ही नहीं है, लेकिन
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy