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________________ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५) ३१५ है और मुझ में शुद्धात्मा है। इन दोनों में कौन सी दृष्टि उच्च मानी जाएगी? दादाश्री : उसमें तो दोनों दृष्टियाँ रखनी पड़ेंगी। वह शुद्धात्मा है, ऐसी दृष्टि तो अपने आप है ही। और दूसरी दृष्टि तो अगर ज़रा सा भी यदि आकर्षण होने लगे तो जैसा है, वैसी ही रखनी चाहिए, वर्ना मोह हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। मैं भी शुद्धात्मा और वह भी शुद्धात्मा ऐसा हो, तो जो अन्य प्रकार का आकर्षण है, वह नहीं रहेगा। दादाश्री : नहीं रहेगा, लेकिन इतनी अधिक जागृति नहीं रह पाती। जब आकर्षण होता है, तब शुद्धात्मा को भूल जाता है। शुद्धात्मा भूले, तभी उसे आकर्षण होता है, वर्ना आकर्षण नहीं हो सकता। इसीलिए तो हमने तुम्हें ऐसा ज्ञान दिया है कि तुम्हें आत्मा दिखे। फिर क्यों मोह होता है?! तुम्हें आकर्षित नहीं होना हो, फिर भी आँखें आकृष्ट हो जाती है। तुम यों आँखें दबाते रहो, फिर भी उस तरफ चली जाती प्रश्नकर्ता : ऐसा क्यों होता है? पुराने परमाणु हैं इसलिए? दादाश्री : नहीं, पहले भूल की है, पहले तन्मयाकार होने दिया है, उसी का यह फल आया है तो अब उस आकर्षण में वापस तन्मयाकार नहीं होकर उसका प्रतिक्रमण करके वह भूल निकाल देनी है। अगर फिर से तन्मयाकार हो जाए तो फिर नये सिरे से भूल हुई, तो उसका फल अगले जन्म में आएगा। अत: तन्मयाकार नहीं हो, ऐसा यह विज्ञान है अपना!! सामनेवाले में शुद्धात्मा ही देखते रहना व और कुछ दिखे और आकर्षण हो जाए तो प्रतिक्रमण करना, अन्यथा भय-सिग्नल ही है। बाकी सबका तुम्हें समभाव से निकाल करना। इसमें तो सामनेवाला ज़बरदस्त बड़ी
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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