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________________ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५) 'वह' फूटता है। फिर वापस धो डालते हैं, लेकिन वह वापस खड़ा हो जाता है ! ३१७ दादाश्री : अतः इस इन्द्रिय ज्ञान का स्वभाव ऐसा है कि सामनेवाला बहुत आकर्षक हो और रागी स्वभाववाला हो तो, वह आपकी आँखों में धूल झोंकता है । उस समय बहुत जागृत रहना पड़ेगा। हम जानते हैं कि इसे नहीं देखना है, फिर भी आकर्षण क्यों हो रहा है? वहाँ पर हमें क्या करना चाहिए कि शुद्धात्मा को ही देखते रहना चाहिए । प्रश्नकर्ता: उस समय फिर से प्रत्याख्यान करना चाहिए ? दादाश्री : प्रतिक्रमण भी करना है और प्रत्याख्यान भी करना है, दोनों करने हैं। प्रतिक्रमण इसलिए करना है कि पूर्व जन्म में कुछ देखा है, उसी से यह उत्पन्न हुआ है। यह संयोग क्यों मिला ? वर्ना हर एक को कोई नहीं देखता । यह तो देखने को मिला सो मिला, लेकिन उसमें से आकर्षण का प्रवाह क्यों बह रहा है ? अतः पूर्व जन्म का हिसाब है, इस जन्म में उसके प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे। जो-जो विषय - विकारी भाव किए हों, इच्छा, चेष्टा, संकल्पविकल्प किए हों, उन सबका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा और फिर प्रत्याख्यान करना पड़ेगा और फिर उनके शुद्धात्मा को ही देखते रहना पड़ेगा। पुद्गल का स्वभाव ज्ञान से... पुद्गल का स्वभाव यदि ज्ञान से रह पाए तब तो फिर आकर्षण होगा ही नहीं। लेकिन पुद्गल का स्वभाव ज्ञान से रह पाता, ऐसा तो होता ही नहीं है न किसी को ! पुद्गल का स्वभाव, हमें तो ज्ञान से रहता है। प्रश्नकर्ता : पुद्गल का स्वभाव ज्ञान से रहे तो आकर्षण नहीं रहेगा, यह समझ में नहीं आया।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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