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________________ ३१२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : निश्चय से तो खुद का विरोध है ही, फिर भी ऐसा होता है कि उदय ऐसे आ जाते हैं कि उसमें तन्मयाकार हो जाते हैं, वह क्या है? दादाश्री : विरोध है तो तन्मयाकार नहीं हो सकते और तन्मयाकार हुए तो 'गच्चा खा गए' ऐसा कहलाएगा। तो ऐसे गच्चा खाया, उसके लिए प्रतिक्रमण तो है ही लेकिन गच्चा खाने की आदत मत डाल लेना, गच्चा खाने के 'हेबीच्युएटेड' मत हो जाना। क्या कोई जान-बूझकर फिसलता है? यहाँ चिकनी मिट्टी हो, कीचड हो, वहाँ लोगों को जान-बूझकर फिसलने की आदत होती है या नहीं? लोग क्यों फिसल जाते होंगे? प्रश्नकर्ता : वह मिट्टी का स्वभाव है और खुद मिट्टी पर चला, इसलिए। दादाश्री : मिट्टी के स्वभाव को तो वह खुद जानता है इसलिए फिर पैर की उंगलियाँ जमाकर चलता है, और भी सभी प्रयत्न करता है। हर तरह के प्रयत्न करने के बावजूद भी अगर गिर जाए, फिसल जाए, तो उसके लिए भगवान उसे अनुमति देते हैं। लेकिन फिर वह ऐसी आदत ही डाल दे, तो क्या होगा?! प्रश्नकर्ता : आदत नहीं पड़नी चाहिए। दादाश्री : फिसलना तो अपने हाथ में, क़ाबू में नहीं रहा, इसलिए सबसे अच्छा तो 'अपना' विरोध, ज़बरदस्त विरोध! फिर जो कुछ हुआ, उसका ज़िम्मेदार तू नहीं है। तू चोरी करने के बिल्कुल विरोध में हो, फिर तुझ से चोरी हो जाए तो तू गुनाहगार नहीं है। क्योंकि तू उसके विरोध में है। प्रश्नकर्ता : हम विरोध में हैं ही, फिर भी यह जो चूक जाते हैं, वह क्या चीज़ है? दादाश्री : बाद में चूक जाते हैं, उसका सवाल नहीं है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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