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________________ [१५] 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति आकर्षण के सामने चाहिए खुद का विरोध प्रश्नकर्ता : "स्त्री पुरुषना, विषय संगते, क़रार मुजब देह भटकशे, माटे चेतो मन-बुद्धि।" यह समझाइए क्योंकि आपने कहा था कि हर कोई अपनीअपनी भाषा में ले जाता है, तो इसमें 'यथार्थ रूप से' क्या होना चाहिए? दादाश्री : जहाँ आकर्षण हो जाए, उस आकर्षण में यदि तन्मयाकार हो गया तो वह चिपक गया। आकर्षण हो जाए, लेकिन आकर्षण में तन्मयाकार नहीं हो तो नहीं चिपकेगा। फिर अगर आकर्षण हो जाए तो उसमें हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : खुद को यह चीज़ कैसे समझ में आएगी कि खुद इसमें तन्मयाकार हो गया है? दादाश्री : उसमें 'अपना' विरोध होना चाहिए, 'अपना' विरोध, वही तन्मयाकार नहीं होने की वृत्ति है। 'हमें' विषय के संग में चिपकना नहीं है, इसलिए 'अपना' विरोध तो रहता ही है न? विरोध है, वही अलग रहना कहलाता है और गलती से चिपक जाए, गच्चा खाकर चिपक जाए, तो फिर उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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