SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'विषय' के सामने विज्ञान से जागृति (खं-2-१५) ३१३ उसे चूक जाने में भगवान के यहाँ कोई हर्ज नहीं है। जितना चूक गए हैं, भगवान तो उसे याद नहीं रखते। क्योंकि चूक जाने का फल तो उसे तुरंत ही मिल जाता है। उसे दुःख तो होता ही है न? वर्ना अगर वह शौक की खातिर करता, तो उसे आनंद होता। प्रश्नकर्ता : इस विषय के बारे में खुद की होशियारी कितनी चल सकती है? दादाश्री : ज्ञान मिला हो तो पूरी होशियारी चल सकती है। प्रश्नकर्ता : ज्ञान मिल जाने के बावजूद भी कुछ अंश तक तो प्रकृति भूमिका निभाती ही है न? दादाश्री : नहीं। ज्ञान से प्रकृति निर्मल हो जाती है। विषय में खुद की सहमति नहीं हो तो निर्मल होती जाती है। प्रश्नकर्ता : विषय में सहमति नहीं होती फिर भी आकर्षित हो जाता है। दादाश्री : वह आकर्षित तो हो सकता है। ऐसे आकर्षित हो जाए तो उसे भी जानना चाहिए। लेकिन स्ट्रोंग निश्चय कभी भी किया ही नहीं। प्रश्नकर्ता : कभी भी न चूकें ऐसा चाहिए। दादाश्री : अपना तो निश्चय होना चाहिए कि हमारा यह ऐसा निश्चय है। फिर अगर कुदरत करे, तो वह अपने हाथ का खेल नहीं है। वह साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है, उसमें किसी का नहीं चलता। प्रश्नकर्ता : इसका अर्थ तो यह हुआ कि ऐसे संयोग मुझे मिलने ही नहीं चाहिए। लेकिन यह कैसे होगा? दादाश्री : ऐसा होगा ही नहीं न! जब तक जगत् है, संसार
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy