SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३) सार मर जाता है। उसके बाद वह मरा हुआ अंदर पड़ा रहेगा । फिर जब सब इकट्ठा हो जाता है, उसके बाद बाहर निकलता है। तब उसे तो ऐसा ही लगता है कि आज मुझे डिस्चार्ज हो गया। डिस्चार्ज तो था ही अंदर, हो ही रहा था। वह बूंद-बूंद करते डिस्चार्ज होता रहता है। प्रश्नकर्ता : बहुत पहले बात निकली थी, तब आपने कहा था कि जब अंदर तन्मयाकार होता है, उसी समय परमाणुओं का स्खलन होता है। २९५ दादाश्री : बस, तन्मयाकार का मतलब ही मंथन । यदि इतना ही समझ ले, तब तो ब्रह्मचर्य का सबसे बड़ा साइन्स समझ जाएगा । विचार आया और तन्मयाकार हो जाए तो अंदर स्खलन हो जाता है, लेकिन इन लोगों को समझ में नहीं आता, समझ ही नहीं है। उस समय भान ही नहीं रहता न! फिर भी प्रतिक्रमण करते हैं तो उससे चल जाता है 1 प्रश्नकर्ता : यानी कि जैसे ही विचार आएँ, तभी से सावधान हो जाना है? दादाश्री : विचार आया और यदि प्रतिक्रमण नहीं किया तो खत्म। न? प्रश्नकर्ता : तो वास्तव में तो विचार ही नहीं आना चाहिए दादाश्री : विचार तो आए बिना रहेंगे नहीं। अंदर भरा हुआ माल है, इसलिए विचार तो आएँगे, लेकिन प्रतिक्रमण उसका उपाय है। विचार नहीं आना चाहिए, ऐसा हो जाए तो गुनाह है। प्रश्नकर्ता : वहाँ तक की स्टेज आनी चाहिए, ऐसा ? दादाश्री : हाँ, लेकिन विचार नहीं आना, वह तो बहुत समय के बाद डेवेलप होते-होते जब आगे बढ़ेगा, प्रतिक्रमण करते-करते
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy