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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) आगे बढ़ेगा, तब उसके बाद पूर्णाहुति होगी न ! प्रतिक्रमण करने लगे तो फिर पाँच जन्मों में, दस जन्मों में भी पूर्णाहुति हो जाएगी न। एक जन्म में शायद खत्म न भी हो । प्रश्नकर्ता : जो विचार आते हैं, वह भरा हुआ माल है ? दादाश्री : वह सब भरा हुआ माल ही है न! विचार अपने आप ही आते हैं। २९६ प्रश्नकर्ता : कभी कभार ऐसा भी होता है कि विचार भी चलते रहते हैं और प्रतिक्रमण भी चलते हैं, दोनों क्रियाएँ साथ में चलती हैं। दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है। भले ही विचार चलते रहें, लेकिन अगर साथ में प्रतिक्रमण भी चलते रहें तो फिर उसमें हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : यह तो ग़ज़ब का साइन्स उजागर हुआ है, दादा! दादाश्री : लेकिन लोगों को समझ में नहीं आ सकता न! यह तो सब पढ़ते हैं इतना ही, फिर भी इतना पढ़ते हैं, वह भी अच्छा है, ज़िम्मेदारी समझें तो भी बहुत हो गया! जोखिमदारी समझ में आ जाए तो भी बहुत हो गया । यह तो ऐसा समझता है कि विचार आ गया, तो उसमें क्या बिगड़ गया ? लेकिन वह तो अभानता है। फिर भी जो बहुत विचारवंत हो, ब्रिलियेन्ट हो, उसे तो ठीक से समझ में आ जाता है और वह बात को समझ भी सकता है, उसे हेल्प भी होती है। यह तो लोग जानते नहीं है कि विचार आ जाए तो क्या होगा ? ये तो कहेंगे कि विचार आया तो उसमें क्या बिगड़ गया ? लोगों को पता नहीं होता कि विचार में और डिस्चार्ज में, इन दोनों की लिंक कैसे है? यदि अपने आप यों ही विचार नहीं आए तो बाहर देखने से भी विचार उत्पन्न हो सकता है ।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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