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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) वर्तन सभी कुछ बदल जाता है !!! वर्ना तब तक तो पुद्गलसार धुलता ही रहता है सारा । यह जो आहार खाया न, उसका सारा सार खत्म हो जाता है। २९४ प्रश्नकर्ता : मन को प्रशिक्षित करने में कुछ समय तो बीत ही जाएगा न? दादाश्री : मन को प्रशिक्षित करने में तो ऐसे कितना समय बीत गया ? अनादि काल से कर रहे हैं, यह सब | प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन जैसा आप कह रहे हैं, मन को उस तरह से प्रशिक्षित करने में कुछ समय तो बीत ही जाएगा न? मन क्या एकदम से प्रशिक्षित हो सकता है ? दादाश्री : थोड़ा समय लेता है, छ: बारह महीने लेता है। प्रश्नकर्ता : यानी पहले आकर्षण होता है और फिर विचार आता है, ऐसा कोई नियम नहीं है । यों ही विचार भी आ सकते हैं ? दादाश्री : विचार तो यों ही आ सकते हैं। प्रश्नकर्ता : फिर जब विचार आते हैं, उसके बाद मंथन शुरू होता है। दादाश्री : विचार आते ही मंथन शुरू हो जाता है, लेकिन यदि प्रतिक्रमण नहीं करे तो । इसलिए हम कहते हैं कि विचार आते ही तुरंत उखाड़कर फेंक देना। एक क्षणभर के लिए भी विचार को रखना नहीं चाहिए, प्रतिक्रमण करके तुरंत फेंक देना। प्रश्नकर्ता : और जिसे बहुत ही स्पीडिली विचार आएँ तो ? दादाश्री : बहुत स्पीडिली में तो उसे समझ में ही नहीं आएगा। क्योंकि अंदर मंथन हो चुका होता है, फिर मंथन से पूरा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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