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________________ आ जाते हैं कि हमारे जान-पहचानवाले या सगे संबंधियों की ही दृष्टि खराब होती है, तो वहाँ पर क्या करना चाहिए ? जैसे हमें उसके इरादों का कुछ पता ही नहीं है, 'नो रिस्पॉन्स', ऐसे रखना और नीचा देखना, जितना हो सके उतना उसे टालना। आकर्षण में बह मत जाना। जहाँ पर आँखें आकृष्ट हों, वहाँ से दूर रहना । निकाचित विकारी मालवाला, सत्संग में भी फिसल जाता है, वह तो भारी नुकसान उठाता है। उसे ज्ञानी से पूछकर साफ कर लेना चाहिए । ‘फाइल’ कब कहलाएगा कि थोड़ी ही देर में आकृष्ट हो जाए। भूत की तरह लिपट जाए। 'फाइल' सामने आए तो अंदर उथल-पाथल मचा देती है। ऊपर जाता है, नीचे जाता है... भीतर चंचलता खड़ी हो जाती है। अकारण मुख पर लाली आ जाती है, खुश-खुश हो जाता है और ‘उसकी दृष्टि कहाँ घूम रही है' यह ढूँढने में ही खुद की दृष्टि खो जाती है। और ‘फाइल' मौजूद नहीं हो फिर भी याद आए, वह तो बहुत भारी जोखिम है, मौजूदगी में असर डाले उससे भी ज़्यादा। तब तो लगाम ही नहीं रहती। मन चंचल हो जाता है और दुःख होता है। कृपालुदेव ने ‘काष्ठ की पुतली है, ऐसा मानना' कहा है। संडास करती हुई स्त्री को देखे तो क्या चित्त वहाँ पर फिर से जाएगा? ऐसा सेट कर देना । या फिर अगर ' नहीं है मेरा, नहीं है मेरा' करेगा तो भी चला जाएगा। अग्नि और 'फाइल' दोनों एक समान । जलाकर मार डालता है। छूते ही जला देता है। 'फाइल' के साथ हमें सख्त नज़र से ही रहना है। उसे खराब लगे, अपमान हो, उस तरह से व्यवहार करना । वहाँ बहुत भारी जोखिम है। फाइल पर तिरस्कार आए, फिर भी हर्ज नहीं। उसका उपाय है। लेकिन तिरस्कार नहीं आए तो समझ जाना कि अभी भी अंदर पोल (गड़बड़) है, चोर नीयत है । जिस 'फाइल' के साथ बहुत गाढ़ हिसाब हो गया हो तो वहाँ ‘नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' करके कई-कई प्रतिक्रमण कर लेना । रूबरु मिले तो अपमान कर देना, तो वह वापस फड़केगी ही नहीं । 33
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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