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________________ मन और चित्त विषय में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। चित्त बारबार वहीं पर रमणता करता है। फिर उसका गलन हुए बिना रहता ही नहीं। एक बार विषय को छूआ तो फिर दिन-रात उसी के सपने आते रहते हैं। इतनी अधिक पकड़ आ जाती है, चित्त पर विषय की! विषय के जो विचार आते हैं, वे मन की ग्रंथि में से। उसका और चित्त का कोई लेना देना नहीं है। चित्त ने यदि विषय को स्पर्श कर लिया तो कितने ही समय तक ध्यान में स्थिरता नहीं रह पाती। दादाश्री कहते हैं कि हमारा चित्त कैसा है कि कभी भी अपने स्थान पर से खिसका ही नहीं। तभी तो दादा की आँखों में सदा वीतरागमय प्रेम और करुणा ही दिखती है! चित्तवृत्तियाँ जहाँ-जहाँ भटकती हैं, वहाँ आत्मा को भटकना पड़ता है! चित्तवृत्तियाँ अगले जन्म के लिए जाने-आने का नक्शा बनाती है। चित्त, वह मिश्रचेतन है इसलिए भटकता है। जहाँ-जहाँ चिपके, वहाँवहाँ! अब जहाँ जाए वहाँ तुरंत ही प्रतिक्रमण से धो दे तो वह विषय दोष नहीं माना जाएगा। जो चित्त को डिगाएँ, वे सभी विषय हैं। चित्त को आत्मा से बाहर जकड़कर रखें, वे सभी विषय। विचारों की नहीं लेकिन चित्त का झंझट बड़ा है! मन में भले ही विषय के कितने भी विचार आएँ, उन्हें हटाते रहो। उनसे बातचीत करो तो परेशानी नहीं होगी। लेकिन चित्त तो बाहर जाना ही नहीं चाहिए। पहले जिन पर्यायों का खूब वेदन किया होगा, चित्त अभी वहाँ पर ज्यादा जाता है। वहीं चिपका रहता है। उसे अटकण कहा गया है। उसे अलग रखकर कहना, 'तू ज्ञेय और मैं ज्ञाता।' उससे फिर तुरंत मुक्त हो जाएगा। यह चित्त फ्रैक्चर होने से विषय में फँस गया है, जिसका फल है जानवर गति! ९. 'फाइलों' के सामने सख़्ती स्त्री यदि मोह का जाल डाले तो उससे कैसे बचें? जहाँ फँसाव हो तो वहाँ हमें दृष्टि ही नहीं डालनी चाहिए और उसकी आँखों से आँखे भी नहीं मिलानी चाहिए। उसे मिलना ही मत। कई बार ऐसे संयोगों में 32
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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