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________________ और यदि तुम किसी के लिए 'फाइल' बन गए हो, तब तो बहुत आसान है वहाँ से छूटना। थोड़ा अपमान करो या उल्टा बोल दो तो वह छोड़ देगी तुम्हें। वहाँ पर अगर 'हमें समभाव से निकाल करना है', कहकर उसे दुःख न हो ऐसा व्यवहार करने जाओगे तो दोनों का ही विषय में बिगड़ेगा। वहाँ समभाव से निकाल यानी उसका अपमान करके तोड़ देना, वह! जब तक तुम्हारी तरफ से ढीला रहेगा, तब तक वह कल्पनाएँ करती रहेगी। इसलिए सामनेवाले की कल्पनाएँ करना जड़ से ही बंद हो जाए, उसके लिए तुम्ही को सख्ती रखकर, तुम्हारे प्रति उसे अभाव आ जाए, ऐसा वर्तन और वाणी सेट कर देने चाहिए या फिर दोस्तों से कहलवा देना कि तेरे जैसी दूसरी दो-तीन को प्रोमिस दिया हुआ है। तुम्हें किसी के प्रति बार-बार विषय के विचार आते रहें, तो फिर सामनेवाले पर भी उसका असर होता है और उसे भी विचार शुरू हो ही जाते हैं। १०. विषयी वर्तन? तो डिसमिस सत्संग में कहीं पर भी दृष्टि बिगड़नी नहीं चाहिए। दृष्टि बिगड़ जाए तो प्रतिक्रमण करके उडा देना, तो भी चलेगा। लेकिन यहाँ पर वर्तन में तो आना ही नहीं चाहिए। यदि ऐसा किसी को हो रहा हो तो वह चलाया ही नहीं जा सकता। उसे फिर डिसमिस करना पड़ेगा। फिर कभी भी सत्संग में आने को नहीं मिलेगा। 'धर्म क्षेत्रे कृतम् पापम्, व्रजलेपम् भविष्यति' धर्मक्षेत्र में किया हुआ पाप व्रजलेप जैसा होता है, जो नर्क में ही ले जाता है। यहाँ रहकर पाशवता करने से तो शादी कर लेना अच्छा। हक़ का तो कहलाएगा। ब्रह्मचर्यवाला एक ही बार फिसला कि खत्म हो गया। यदि संयोग संबंध हो जाए तो वह आत्महत्या के बराबर है। उसका बहुत जोखिम है। वह चलेगा ही नहीं। बाकी सभी गलतियाँ चलाई जा सकती हैं लेकिन यह नहीं चलाई जाएगी। वहाँ दादा की नज़र बहुत सख्त हो जाती है। नज़रें लाल ही रहती हैं, उस पर। इसलिए ब्रह्मचारियों से दो नियम लिखवाए थे। एक तो, विषय संयोग हो जाए तो खुद ही यह सत्संग छोड़कर हमेशा के लिए दूर चले जाना होगा और दूसरा पूज्य दादाश्री की मौजूदगी में कोई झोंका नहीं खा सकता। यदि झोंका खा ले तो उसे खुद ही रूम छोड़कर चले जाना होगा। 34
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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