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________________ होता है कि मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, सभी पर आवरण आ जाता है। अभान कर देता है! मूर्छित! उस समय जानवर ही बना देता है! शराब पीने के बाद मूर्छित हो जाता है, वैसा। लेकिन शराब पीने के बाद अभान होते होते तो आधा घंटा या घंटा बीत जाता है और यह तो छुते ही इलेक्ट्रिसिटी की तरह असर डाल देता है और अंदर विषय चढ़ जाता है! देर ही नहीं लगती! दादाश्री निज अनुभव कहते हैं, "कम उम्र में सिर्फ छूने से ही अंदर घबराहट हो गई थी कि अरेरे, यह क्या हो जाता है? यह तो इंसान में से हैवान बन जाते हैं! फिर इसकी 'नो लिमिट'। हम तो अनंत जन्म से ब्रह्मचर्य के रागी हैं इसलिए यह अच्छा नहीं लगता, लेकिन मजबूरन हुआ था। थोड़ा बहुत संसार भोगा लेकिन अरुचिपूर्वक, प्रारब्धवश, ऐसा तो क्या शोभा देता होगा?" स्पर्श सुख के समय क्या करना चाहिए? 'यह रोंग बिलीफ है,' लगातार ऐसे टोकते रहना और स्पर्श ज़हर जैसा लगना चाहिए। लेकिन यह तो पूर्व जन्म की मान्यता है कि इसमें सुख है, उस आधार पर सुख लगता है। इसलिए अब उस मान्यता को हटा देना है। बाद में ज्ञान की पराकाष्ठा में स्पर्श सहज लगेगा। स्त्री का दोष नहीं है, अपनी मान्यता का दोष है। विषय में सुख है, यह बिलीफ कैसे बैठ गई? लोकसंज्ञा से। लोगों के कहने से। यह मात्र साइकोलॉजिकल इफेक्ट है। दृष्टि आकृष्ट होने का साइन्स क्या है? जहाँ पूर्व जन्म का कुछ हिसाब है, वहाँ दृष्टि आकृष्ट हो जाती है। दृष्टि आकृष्ट हुई और उसमें आकर्षण और विषय की रमणता हुई कि परमाणुओं का ज़बरदस्त असर होने लगता है। फिर खिंचाव और आकर्षण बढ़ता जाता है। उसका पीक (उच्चतम) पॉइन्ट आने के बाद कुदरती रूप से विकर्षण होने ही लगता है। आकर्षण शुरू हुआ तभी से विकर्षण के कारणों का सेवन शुरू हो गया, ऐसा माना जाता है। ऐसा है परमाणुओं का अट्रैक्शन (आकर्षण)! परमाणुओं का आकर्षण करता है यह सारा काम। आकर्षण के बाद खुद की सत्ता रहती ही नहीं। फिर विकर्षण होता ही है। चारा ही नहीं है। वे परमाणु ही खुद विकर्षण करवाकर अलग करवा देते हैं! उसके अमल का फल देकर! 31
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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