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________________ न हो असार, पुद्गलसार (खं-2-१३) २७३ प्रश्नकर्ता : ऊर्ध्वगामी और अधोगामी, ये दोनों 'रिलेटिव' शब्द नहीं हुए? दादाश्री : हाँ, 'रिलेटिव' ही कहलाएगा। लेकिन 'रिलेटिव' में यों बदलाव हो जाए तो हमें लाभ मिलेगा! अपने 'ज्ञान' से बदलाव हो सकता है। हम क्या कहते हैं कि हम ज्ञान प्रकट रखेंगे तो सारा बदलाव अपने आप होता रहेगा। अपना ज्ञान प्रकट नहीं रखने से बदलाव नहीं होगा। रिलेटिव में तो हम कुछ भी नहीं कर सकते, लेकिन हम अपने में कर सकते हैं और उसका फोटो 'रिलेटिव' पर पड़ता है। इसलिए हमें सिर्फ जागृति ही रखनी है। वीर्य के परमाणु सूक्ष्मरूप से ओजस में परिणामित होते हैं, उसे फिर नीचे उतरना, अधोगामी होना नहीं रहता, यह मेरा अनुभव है। वे शक्तियाँ जो डाऊन हो रही थीं, वे ऊपर चढ़ती हैं। जो संसार में खाया-पीया, वे सारी शक्तियाँ दो तरह से परिणामित होती हैं। एक संसार के रूप में और दूसरी ऐश्वर्य के रूप में! अहो, अहो! उन आत्मवीर्यवालों की प्रश्नकर्ता : यह जागृति बढ़ते-बढ़ते कुछ लिमिट तक आई यानी यहाँ तक आकर अटक जाती है। लेकिन दूसरे किसी भी प्रकार के, यों व्यवहार में रिवोल्युशन खुलने चाहिए, वह नहीं हो पाता। दादाश्री : तुझे व्यवहारिक ज़्यादा नहीं है न! लेकिन अभी तो वह शक्ति खड़ी होगी। आत्मवीर्य ही नहीं है न! आत्मवीर्य प्रकट नहीं हो रहा है। ऐसा है न, तेरे मन में व्यवहार सहन करने की इतनी सी भी शक्ति नहीं है, इसलिए भागता है, भागकर एकांत में चले जाने की कोशिश करता है। लेकिन यह दर्शन प्रकट हुआ, इसलिए तुझे 'खुद की' गुफा में घुसना आ गया, वर्ना परेशानी हो जाती! प्रश्नकर्ता : आपने जो कहा कि आत्मवीर्य प्रकट नहीं हुआ है। तो आत्मवीर्य कैसे प्रकट होता है?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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