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________________ २७२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) हैं न? उनमें से एक में से हड्डियाँ बनती है, एक में से मांस बनता है, उनमें से फिर अंत में सबसे आखिरी में वीर्य बनता है। अंतिम दशा में वीर्य बनता है। वीर्य, वह तो पुद्गलसार कहलाता है। दूध का सार घी कहलाता है, उसी तरह भोजन करने का सार वीर्य कहलाता है। अब इस सार को क्या मुफ्त में ही दे देना चाहिए या महंगे दाम पर बेचना चाहिए? प्रश्नकर्ता : महंगे दाम पर बेचना चाहिए। दादाश्री : ऐसा? लोग तो पैसा खर्च करके बेचते हैं और तू कहता है कि महंगे दाम पर बेचना चाहिए, तो महंगे दाम पर तुझ से कौन लेगा? लोकसार, वह मोक्ष है और पुद्गलसार, वह वीर्य है। जगत् की सभी चीजें अधोगामी हैं। यदि ठान ले तो सिर्फ वीर्य ही ऊर्ध्वगामी बन सकता है इसलिए ऐसे भाव करने चाहिए कि वीर्य ऊर्ध्वगामी हो। वीर्य के दो गमन हैं। एक अधोगमन और दूसरा ऊर्ध्वगमन। जब तक अधोगमन है, तब तक पाशवता है। प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान में रहने पर तो अपने आप ऊर्ध्वगमन होगा ही न? दादाश्री : हाँ, और यह ज्ञान ही ऐसा है कि अपने ज्ञान में रहो तो कोई दिक्कत नहीं आएगी, लेकिन जब अज्ञान उत्पन्न होता है तब अंदर यह रोग उत्पन्न हो जाता है। उस समय जागृति रखनी पड़ेगी। विषय में तो अपार हिंसा है, खाने-पीने में ऐसी कोई हिंसा नहीं होती। इस जगत् में साइन्टिस्ट और सभी लोग कहते हैं कि वीर्यरज अधोगामी है। लेकिन अज्ञानता है, इस वजह से अधोगामी है। ज्ञान में तो ऊर्ध्वगामी बन जाता है। क्योंकि ज्ञान का प्रताप है न! ज्ञान हो तो कोई विकार ही नहीं होगा, फिर भले ही कैसी भी बॉडी हो, भले ही कितना भी खाता हो। अतः मुख्य चीज़ ज्ञान है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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