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________________ २५६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) लेकिन ये तो सभी कमज़ोर! ये तो तुरंत सबकुछ छोड़ दें। स्ट्रोंग तो, कुछ भी हो जाए, मौत आ जाए फिर भी आत्मा मेरा है और दादा की आज्ञा छोडूंगा ही नहीं, उसे स्ट्रोंग कहते हैं। जो आना हो वह आओ, कहना! अब इन लड़कों की बिसात ही क्या? इनमें तितिक्षा नामक गुण का विकास ही नहीं हुआ है न? प्रश्नकर्ता : आपको पैर में फ्रैक्चर हुआ था, जॉन्डिस हुआ था, ऐसे सारे कष्ट एक साथ आ गए। एक ही स्थान पर, एक ही पॉज़िशन में चार महीनों तक बैठे रहना, तो ये सब टेस्ट एक्जामिनेशन कहलाएगा न? दादाश्री : यह तो कष्ट था ही नहीं, इसे कष्ट नहीं कह सकते। प्रश्नकर्ता : आपको नहीं लगता? दादाश्री : नहीं, बाकी औरों के लिए भी कष्ट नहीं माना जाएगा। इसे कहीं कष्ट माना जाता होगा? अरे, कष्ट तो तुमने देखा ही नहीं हैं। ब्रह्मचारी जी पत्थर पर खड़े रहकर जो तप करते थे, यदि उन्हें देखा होता तो आपको मन में ऐसा लगता कि ऐसा तो अपने से एक दिन के लिए भी नहीं हो सकता। मुझे भी ऐसा लगता था न, कि ये प्रभु श्री के शिष्य ब्रह्मचारी जी ऐसा करते हैं तो प्रभु श्री कितना करते होंगे? और कृपालुदेव तो न जाने कितना करते होंगे! लोग उनके ऊपर से मच्छर उड़ा जाते और कुछ ओढ़ाकर जाते तो वे खुद ओढ़ने का निकाल देते और आराम से मच्छरों को काटने देते थे! सिर्फ आत्मा ही प्राप्त करना है, ऐसा ध्येय लेकर बैठे थे। अब इन्हें यह पुण्य से मुफ्त में प्राप्त हो गया है, बाकी तितिक्षा होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : उन लोगों ने तो, क्रमिकमार्ग था इसलिए त्याग किया था। अपने अक्रम मार्ग में तितिक्षा करनी हो तो क्या करना चाहिए?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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