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________________ तितिक्षा के तप से गढ़ो मन - देह (खं - 2- १२) I दादाश्री : अपने यहाँ त्याग करने की ज़रूरत नहीं है जिसने आत्मा प्राप्त कर लिया है उन्हें कभी-कभी ऐसे संयोग मिल जाते हैं। उस समय यदि वह स्ट्रोंग रहा तो रहा, वर्ना घबरा जाएगा। इसलिए पहले से ही तैयारी रखनी चाहिए। २५७ प्रश्नकर्ता : ये लड़के अभी जिस सुख के सराउन्डिंग में जी रहे हैं, उस सुख में से उन्हें उठाकर कोई स्मशान में रख आए तो वह दुःख ज़्यादा ही लगेगा न? दादाश्री : क्यों स्मशान में? वहाँ क्या दुःख है? प्रश्नकर्ता : वह ठीक है, लेकिन अमावस की रात में अंधेरे में कभी भी गया नहीं हो और वहाँ उल्लू बोले तो... दादाश्री : हाँ, उल्लू तो क्या ? लेकिन एक कौआ उड़े तो भी घबरा जाएगा। इसलिए इन लोगों को समतापूर्वक दुःख सहन करना चाहिए। जो कुछ भी करो, वह मुझसे पूछकर करना । अभी तो इन लोगों में इतना सा दुःख सहन करने की भी शक्ति नहीं है। पुलिसवाला मारे और कहे कि, 'आप पलटते हो या नहीं ?' तो ये लोग पलट जाएँगे, आत्मा वगैरह सबकुछ छोड़ देंगे। जबकि क्रमिक-मार्गवालों को घानी में पीलें फिर भी कोई आत्मा नहीं छोड़ेगा। तितिक्षा, यह जैनों का शब्द नहीं है, यह वेदांतियों का शब्द है। विकसित होता है मनोबल, तितिक्षा से प्रश्नकर्ता : हमें यह तितिक्षा विकसित करनी पड़ेगी न ? दादाश्री : अब अगर यह गुण डेवेलप करने जाए तो आत्मा खो देगा। इसलिए जब आपके जाने का समय आ जाए, फिर भी आत्मा को मत छोड़ना, अंदर सिर्फ इतना रखना। देह अगर छूट जाएगी, तो देह तो वापस मिल जाएगी, लेकिन आत्मा वापस नहीं मिलेगा ।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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