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________________ २५५ तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह (खं-2-१२) के धड़ाके हो रहे हों तो उस समय आपको अंदर क्या होगा? प्रश्नकर्ता : ऐसा सोचा ही नहीं है! दादाश्री : ऐसा सोचा ही नहीं? प्रश्नकर्ता : हमें वस्तु(आत्मा) की समझ नहीं है, इसलिए अनुभव नहीं हो पाता। निरंतर वैसा अनुभव नहीं रह पाता? दादाश्री : आपको तो इसकी समझ ही नहीं है न! यह तो आपको अंदर ठंडक अपने आप रहे तभी तक ठीक रहता है, लेकिन उसे गायब होने में तो देर ही नहीं लगेगी न! इन लडकों को कछ समझ ही नहीं है न! उन्हें अगर कोई कहेगा कि 'बच्चे, ले यह बिस्किट', तो वह बिस्किट देकर हीरा ले लेगा। तो इनकी समझ कैसी है? वस्तु की कीमत ही नहीं है न! फिर भी ये लड़के पुण्यशाली ज़रूर है, लेकिन हैं बालक। ये सभी व्रत लेनेवाले तो बालक जैसे हैं। थोड़ा सा भी दु:ख आए तो यह सबकुछ दाव पर लगा दें! किसी भी प्रकार के दुःख पर ध्यान नहीं दे, तब जाकर यह व्रत रह पाएगा। मेरी आज्ञा में पूरी तरह से रहे, तब यह व्रत रह पाएगा! प्रश्नकर्ता : आप तितिक्षा गुण कह रहे थे कि किसी भी अवस्था में दुःख सहन करना, ऐसा? दादाश्री : इन लोगों ने कोई दुःख देखा ही नहीं है। दुःख देखना पड़े, उससे पहले तो इन लोगों का आत्मा ही निकल जाए। फिर भी ऐसे करते-करते इन लड़कों का अगर पोषण हो जाए और ऐसे दस-बीस साल बीत जाएँ तो फिर उन्हें समझ में आ जाएगा सबकुछ और जड़ें डाल देंगे। बाकी ये सब तो कमज़ोर इंसान कहलाते हैं। प्रश्नकर्ता : यों तो सभी स्ट्रोंग लगते हैं। दादाश्री : कौन? ये? नहीं, वह तो ऐसा लगता है आपको।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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