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________________ १८६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) आत्मा बहुत अधिक ध्यान में रहे तो नहीं छूएगा। लेकिन इंसान को इतनी जागृति ठीक से रह नहीं पाती न? प्रश्नकर्ता : यह जो दो पत्तियों की अवस्था में ही उखाड़ने का विज्ञान है, कि 'विषय की गाँठ फूटे, तब दो पत्तियों से ही उखाड़ दो।' तो जीत सकते हैं न? दादाश्री : हाँ, लेकिन विषय ऐसी चीज़ है कि यदि उसमें एकाग्रता हो जाए तो आत्मा को भूल जाए। इसलिए यह गाँठ इस प्रकार से हानिकारक है, वह सिर्फ इसीलिए कि जब वह गाँठ फूटती है तब एकाग्रता हो जाती है। एकाग्रता हो जाए तब विषय कहलाता है। एकाग्रता हुए बगैर विषय कहलाएगा ही नहीं न! वह गाँठ फूटे, तब इतनी अधिक जागृति रहनी चाहिए कि विचार आते ही उखाड़कर फेंक दे, तो उसे वहाँ पर एकाग्रता नहीं होगी। यदि एकाग्रता नहीं है तो वहाँ पर विषय है ही नहीं, तो वह गाँठ कहलाएगी जब वह गाँठ पिघलेगी तब काम होगा। प्रश्नकर्ता : मतलब अगर वह गाँठ विलय हो जाए तो फिर वह आकर्षण का व्यवहार ही नहीं रहेगा न? दादाश्री : वह व्यवहार ही बंद हो जाएगा। पिन और लोहचुंबक का संबंध ही बंद हो जाएगा। वह संबंध ही नहीं रहेगा। उस गाँठ की वजह से यह व्यवहार जारी है न! अब, ऐसा ध्यान में रहना बहुत मुश्किल है कि विषय स्थूल स्वभावी है और आत्मा सूक्ष्म स्वभावी है, इसलिए एकाग्रता हुए बगैर रहेगी ही नहीं न! वह तो ज्ञानीपुरुष का काम है, अन्य किसी का काम ही नहीं! बाकी इसमें हाथ डालना ही मत, वर्ना वह जल जाएगा। ज्ञानीपुरुष तो भय टालने के लिए आपसे कहते हैं। पूरा जगत् जैसा समझता है, आत्मा वैसा नहीं है। आत्मा तो जैसा महावीर भगवान ने जाना है वैसा है, ये दादा जैसा बताते हैं, आत्मा वैसा है। ये गाँठे, वे तो आवरण हैं! जब तक ये गाँठे हैं तब तक
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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