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________________ पछतावे सहित प्रतिक्रमण (खं-2-७) १८७ आत्मा का स्वाद नहीं आने देंगी। इस ज्ञान के बाद अब गाँठें धीरे-धीरे विलय होती जाएँगी, बढ़ेंगी नहीं अब। फिर भी कौन सी गाँठे परेशान करती है, कौन सी दु:ख देती हैं, उतनी ही देखनी हैं। सभी गाँठे नहीं देखनी हैं। वह तो, जैसे इस मार्केट में सभी सब्जियाँ पड़ी रहती हैं, लेकिन उनमें से कौन सी सब्जी पर अपनी दृष्टि जाती रहती है, उसी का झंझट है, अंदर वह गाँठ बड़ी है! तेरी कौन-कौन सी गाँठ बड़ी है? प्रश्नकर्ता : विषय की एक बड़ी है, फिर लोभ की आती है, फिर मान-अपमान की आती है। फिर कपट में तो, खुद का बचाव, स्व रक्षण करने के लिए कपट खड़ा होता है। दादाश्री : अन्य किसी के लिए कपट नहीं है न? प्रश्नकर्ता : अपमान का भय हो या खुद की गलती हो तब। दादाश्री : हाँ, लेकिन इसके अलावा अन्य किसी चीज़ के लिए कपट नहीं है न? ये सभी गाँठे कपटवाली ही होती हैं, कपट करे तभी इनका फल मिलता है! सभी गाँठे कपटवाली होती प्रश्नकर्ता : वह कैसे? दादाश्री : मान भी कपट करने से मिलता है. अपमान भी कपट करने से मिलता है, विषय भी कपट के बिना नहीं मिलता। विकारी विचार आते हैं क्या? प्रश्नकर्ता : ऐसा होता हैं अभी भी। वे परिणाम खड़े होते हैं, लेकिन खुद की पकड़ नहीं होती है उसमें। लेकिन अभी भी जो ऐसे परिणाम आ जाते हैं, वे क्या हैं ? दादाश्री : क्यों मांसाहार के विचार नहीं आते? ऐसा क्यों?
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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