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________________ 'खुद' अपने आपको को डाँटना (खं-2-६) १७९ स्वभाव है कि पुराना हो जाए तो बिगड़ता जाता है। फिर वापस नई सेटिंग करके रख देनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : अर्थात् उस प्रयोग द्वारा ही कार्य सिद्ध हो जाना चाहिए। ऐसा नहीं होता और बीच में ही बंद हो जाता है प्रयोग । दादाश्री : ऐसा करते-करते सिद्ध होगा, एकदम से नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : वह प्रयोग अधूरा हो और फिर दूसरा प्रयोग करते हैं। वह अधूरा छोड़ देते हैं । कोई तीसरा प्रयोग बताया । वह भी अधूरा ! मतलब सभी अधूरे रहते हैं । दादाश्री : वह तुम वापस पूरा कर लेना, धीरे-धीरे एकएक को लेकर । अरीसे का प्रयोग पूरी तरह से नहीं किया ? प्रश्नकर्ता : नहीं! जब भी करते हैं, उतना लाभ होता है। लेकिन उसके बाद जुदापन रहना ही चाहिए, इन भाई को जैसा अलग देखता हूँ, वैसा परमानेन्ट फिर नहीं देख पाता । प्रकृति को जानते ज़रूर हैं कि अलग है। दादाश्री : कितना डाँटा था उसने । रोना आ गया तब तक डाँटता रहा। तो बोलो अब कितना अलग हो गया ? ! तूने डाँटा है, ऐसा कभी ? रो दिया हो वैसे ? प्रश्नकर्ता : रोया नहीं था, लेकिन ढीला पड़ गया था। दादाश्री : ढीला पड़ गया था। तू डाँटता है तो सीधा हो जाता है क्या! तो फिर वह प्रयोग कितना कीमती प्रयोग है। लोगों को आता नहीं है। देखो न, यह भाई बैठा रहता है घर पर, लेकिन ऐसा प्रयोग नहीं करता। प्रश्नकर्ता : हम भी बैठे रहते हैं, तो इसमें कमी है या फिर प्रयोग का महत्त्व नहीं समझे? इसमें हकीकत क्या है ? दादाश्री : उतना उल्लास कम है।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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