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________________ [७] पछतावे सहित प्रतिक्रमण प्रत्यक्ष आलोचना से, नकद मुक्ति! थ्री विज़न से तो सबकुछ ठीक हो ही जाता है न! प्रश्नकर्ता : कभी अगर मेरी दृष्टि पड़ जाती है न, तब मुझे लगता है कि 'अरेरे! यह दृष्टि क्यों पड़ी?! प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। चीढ़ मचती है। दादाश्री : लेकिन चीढ़ मचती है न, वह तो ऐसा है कि दृष्टि पड़ जाती है। तुम्हें डालनी नहीं है फिर भी पड़ जाती है। इसलिए पुरुषार्थ करना है और प्रतिक्रमण करने की भी ज़रूरत प्रश्नकर्ता : कुछ चीज़ों पर इतना गुस्सा आता है कि, ऐसा लगता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? समझ में नहीं आता। दादाश्री : पिछली बार प्रतिक्रमण नहीं किए थे, इसलिए इस बार वापस दृष्टि जाती है। अब प्रतिक्रमण करोगे तो, अगले जन्म में फिर से नहीं जाएगी। प्रश्नकर्ता : कभी-कभी तो प्रतिक्रमण करने में चिढ़ मचती हैं। एकदम से इतने सारे करने पड़ते हैं। दादाश्री : हाँ, यह अप्रतिक्रमण का दोष है। उस समय प्रतिक्रमण नहीं किए, इसलिए आज यह हुआ। अब प्रतिक्रमण करने से वापस दोष खड़ा नहीं होगा।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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