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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) वह उन दोनों को भुगतना पड़ता है। लेकिन यदि अलग रहकर करें न, तो हर एक की अपनी ज़िम्मेदारी । इसलिए तुम अलग रहकर करो, ताकि फिर सिर्फ चंद्रेश को ही भुगतना पड़े। तुम्हें नहीं भुगतना पड़ेगा और वह तो तुम्हें और चंद्रेश को दोनों को भुगतना पड़ेगा । है प्रकृति का, जब ऐसा नहीं रहेगा कि आत्मा ने किया है, तब ठिकाने आएगा । पूरा करो प्रकृति को पटाकर प्रश्नकर्ता : हर एक को खुद की फाइल देखकर करना चाहिए। हर एक की फाइल को अलग-अलग दवाई माफिक आती है। एक सी दवाई माफिक नहीं आती। मेरी फाइल को डाँटने की ऐसी कड़ी दवाई माफिक नहीं आती। १७८ दादाश्री : हाँ, किसी को प्रेशर बढ़ जाता है, किसी को कुछ ऐसा हो जाता है । प्रश्नकर्ता : तो ये सब एक दूसरे का देख-देखकर करने जाते हैं। दादाश्री : नहीं! देख-देखकर मत करना । ' मुझसे पूछना वह।' ऐसा मैंने कहा है। अरे, कोई मत करना। गेटआउट - गेटआउट, कहोगे तो ब्लडप्रेशर बढ़ जाएगा। इसलिए तुम्हें तो अरीसे (दर्पण) में देखकर कहना है कि ‘भाई, मैं हूँ तेरे साथ । तू घबराना मत', कहना। उससे प्रेशर नहीं बढ़ेगा। निश्चय चाहिए इसमें, निश्चय । प्रश्नकर्ता : आप जो प्रयोग बताते हैं न, अरीसे (दर्पण) में सामायिक करने का। फिर प्रकृति के साथ बातचीत करना, वे सभी प्रयोग बहुत अच्छे लगते हैं। फिर दो-तीन दिन अच्छे से होता है, उसके बाद उसमें कमी आ जाती है। दादाश्री : कमी आ जाए तो फिर वापस नए सिरे से करना। पुराना हो जाए तो कमी आ ही जाती है। पुद्गल का
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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