SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'खुद' अपने आपको को डाँटना (खं-2-६) १७५ विचारों को देखते रहना है। तुम्हें ऐसा कहना है कि 'ओह तो तुम सब अंदर बैठे हुए हो?' इतना सख्त कयूं लगाया है, फिर भी घुस गए हो?' कहना! इसलिए 'भागो, वर्ना यह कप! है' कहना, 'अब आ बनेगी, समझो।' ब्रह्मचर्य ठीक से पालन होने लगे तो धीरे-धीरे असर होने लगता है। चेहरे पर कुछ तेज आने लगता है। लेकिन अभी भी, चेहरे पर कुछ खास तेज नहीं दिखता। घाटा नहीं दिखता लेकिन तेज भी नहीं दिखता ठीक से! प्रश्नकर्ता : उसका क्या कारण होगा? दादाश्री : नीयत! नीयत तेरी खराब है। तेज कहाँ से दिखेगा? वह तो, देखने से पहले ही तेरी नीयत बिगड़ जाती है। कहीं विषय-विकार होने चाहिए? ब्रह्मचारी होने के बाद! प्रश्नकर्ता : उसके लिए क्या करना चाहिए? यह नीयत ऐसी है तो नीयत सुधारने के लिए क्या करना चाहिए? उसका उपाय क्या है? दादाश्री : ये जो विचार आ रहे हैं, वह मैं नहीं हूँ। हमें उसे डाँटना चाहिए। क्या तू डाँटता था? चंद्रेश को डाँटता था न? तूने कभी डाँटा है? फिर पुचकारता ही रहेगा तो क्या होगा? उसे डाँटना और, 'दो थप्पड़ मार दूंगा,' ऐसे कहना। रोएगा तो चंद्रेश रोएगा। तू डाँट रहा हो और चंद्रेश रोए! ऐसा होगा तब ठिकाने आएगा। वर्ना अणहक्क के विषय-विकार तो नर्कगति में ले जाएँगे। उससे अच्छा तो शादी कर लेना, वह हक़ का तो है! विषयविकार की इच्छाएँ नहीं होती? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी ऐसे विचार आते हैं! दादाश्री : लेकिन वह कभी-कभी न? यानी कि जैसे रोज़ खाने का विचार आता है, ऐसा नहीं है न? वह कभी-कभी हाज़िर हो जाता है। किसी दिन बारिश होती है, वैसे? ।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy