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________________ [६] 'खुद' अपने आपको को डाँटना ___ खुद को डाँटकर सुधारो प्रश्नकर्ता : आप से आज्ञा ली थी लेकिन फिर घर जाने के बाद ज़रा बिगड़ गया। दादाश्री : अब क्या होगा? ऐसा हो गया फिर अलीखान क्या करे?! प्रश्नकर्ता : ऐसा क्यों होता है? ऐसा होने का कारण क्या है? दादाश्री : नासमझी है तुम्हारी। यहाँ से तय करके जाते हो कि मुझे घर जाकर दवाई पी लेनी है, लेकिन न पीए तो फिर अपनी नासमझी ही कहलाएगी न! देखो न, इस भाई ने डाँटा था अपने आपको, धमका दिया था। यह रो भी रहा था, और वह डाँट रहा था, दोनों देखने जैसी चीज़ थी। प्रश्नकर्ता : एक बार दो-तीन बार चंद्रेश को डाँटा था, तब वह बहुत रोया भी था। लेकिन मुझे ऐसा भी कह रहा था कि 'अब ऐसा नहीं होगा,' फिर भी वापस हो ही जाता है। दादाश्री : हाँ। वैसा होगा तो सही, लेकिन वह तो बारबार कहते रहना है। हमें कहते रहना है और वह होता रहेगा। कहने से अपना जुदापन रहेगा। तन्मयाकार नहीं होंगे। जैसे पड़ोसी को डाँट रहे हों, उस तरह चलता रहेगा। ऐसे करते-करते खत्म हो जाएगा और सभी फाइलें खत्म हो जाएँगी न!
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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