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________________ दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३) १०७ यों देखते ही अगर नंगा हो तो कैसा दिखेगा? फिर अगर चमड़ी निकाल दें तो कैसा दिखेगा? फिर चमड़ी काटकर आंतें बाहर निकाल दी हों तो कैसा दिखेगा? इस तरह संपूर्ण दृष्टि आगे-आगे बढ़ती रहे, तो वे सभी पर्याय यों एक्जेक्ट दिखेंगे। लेकिन ऐसा अभ्यास ही नहीं किया न? तो ऐसा कैसे दिखेगा? इसका तो पहले खूबखूब सोचकर अभ्यास करना पड़ेगा। इस स्त्री जाति को सिर्फ यों हाथ छू गया हो तो भी निश्चय डिगा देता है। रात को सोने ही नहीं दे, ऐसे हैं वे परमाणु! इसलिए स्पर्श तो होना ही नहीं चाहिए और अगर दृष्टि संभाल ले तो फिर निश्चय नहीं डिगेगा! ब्रह्मचर्य की भावना करना और बहुत स्ट्रोंग रहना! निश्चय में सावधान रहना, क्योंकि पुण्य अस्त होते देर नहीं लगती। खुद के निश्चय में बहुत ताकत हो तभी काम होता है। बार-बार मन बिगड़ जाता हो तो फिर निश्चय रहेगा ही नहीं न?! निश्चय ज़बरदस्त होना चाहिए, 'स्ट्रोंग' होना चाहिए। उसके बाद सभी सहार देते हैं, सभी 'हेल्प' करते हैं। निश्चय के सामने किसी की नहीं चलती। निश्चय सबसे बड़ी चीज़ है। खुद का निश्चय मज़बूत होना चाहिए। उस निश्चय को, जब अंदर ही अंदर बात निकले तो ठगता रहता है, और फिर अंदर से ही सलाह दे देकर निश्चय को तोड़ देता है। तो जब-जब ये सलाह दी जाए, तब हमें उसकी नहीं सुननी चाहिए। तेरे साथ ऐसा होता है कभी? प्रश्नकर्ता : दो महीने पहले इन सब में से गुज़र चुका हूँ। दादाश्री : अभी नहीं होता न अब? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तब अच्छा है। अंदर तो बहुत भारी 'रेजिमेन्ट' पड़ी हुई हैं, बहुत बड़ी-बड़ी हैं। इतना ही सँभाल लेना ज़रा
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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