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________________ १०६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) कर लेगा! 'वे अभिप्राय पक्के नहीं हैं,' इसका क्या मतलब है कि उसमें ज़रा छूट रहने दी होती है। निश्चय के परिपोषक आपका संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करने का निश्चय और हमारी आज्ञा, वह तो काम ही निकाल देगा, लेकिन यदि भीतर निश्चय ज़रा सा भी इधर-उधर नहीं हो तो! हमारी आज्ञा तो, वह जहाँ जाएगा वहाँ रास्ता दिखाएगी और हमें बिल्कुल भी प्रतिज्ञा नहीं छोड़नी चाहिए। विषय का विचार आ जाए तो आधे घंटे तक तो धोते रहना चाहिए कि क्यों अभी तक विचार आ रहे हैं! और आँखें गड़ाकर तो किसी के भी सामने देखना ही नहीं चाहिए। जिन्हें ब्रह्मचर्य पालन करना है, उन्हें आँखें गड़ाकर तो देखना ही नहीं चाहिए, बाकी सब तो देखेंगे। तू नीचे देखकर चलता है या ऊपर देखकर चलता है? प्रश्नकर्ता : नीचे देखकर। दादाश्री : कितने समय से? प्रश्नकर्ता : जब से ज्ञान मिला है, तब से। दादाश्री : उससे पहले ऊपर देखकर चलता था? उससे तो आँखें जल जाती हैं और सभी रोग उसी में हैं। देखते ही रोग घुस जाता है! उसमें क्या आँखों का दोष है? नहीं। अंदर की अज्ञानता का दोष है! अज्ञानता से उसे ऐसा ही लगता है कि 'यह स्त्री है', लेकिन ज्ञान क्या कहता है? कि 'यह शुद्धात्मा है'। मतलब जिसे ज्ञान है, उसकी तो बात ही अलग है न?! हमारा वचनबल तो रहता है लेकिन इतनी चीज़ों का ध्यान रखना पड़ेगा। तब आपका निश्चय नहीं डिगेगा। एक तो किसी के सामने दृष्टि नहीं गड़ानी चाहिए, धर्म संबंधित हो तो हर्ज नहीं है, लेकिन वह सहज होना चाहिए। दूसरा, कपड़े पहना हुआ इंसान
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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