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________________ दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार (खं-2-३) १०५ घूमता है, इसलिए मोह करवाता ही रहता है न?! अंदर जो अहंकार है, वह पूरे दिन मोह की शराब पीकर घूमता ही रहता है और जहाँ मोहवाली चीज़ देखे कि वापस वहाँ खिंच जाता है। प्रश्नकर्ता : वहाँ पर क्या निश्चय काम नहीं आता? दादाश्री : निश्चय तो काम आता है, लेकिन पहले से निश्चय हो और दादा की आज्ञा में रहे, तब काम आता है। दादा की आज्ञा से निश्चय मज़बूत होता है। वह निश्चय काम आता है, बाकी ऐसा गाँठवाला निश्चय नहीं चलेगा। निश्चय कैसा होना चाहिए? कि जो डगमगाए नहीं, फिर से कहना भी नहीं पड़े कि 'मैंने निश्चय किया है।' यह तो गाँठ बाँधता है कि आज यह निश्चय किया है, 'अब यह नहीं खाना है' और कल वापस खाने बैठ जाता है! अर्थात दादा की आज्ञा में रहें, तो फिर निश्चय मज़बूत हो जाता है। उसके बाद वह निश्चय कभी बदलता ही नहीं। हमारी आज्ञा का पालन करते रहना। आज्ञा आसान और अच्छी है, रिलेटिव और रियल पूरे दिन में एक घंटा देखना ही पड़ेगा न! तब जाकर निश्चय मज़बूत होगा। निश्चय को मज़बूत करनेवाली 'यह' आज्ञा है। हमारी बातों में से सार निकाल लेना कि इसका सार क्या है? उतना ही वाक्य आपको पकड़ लेना है। आपका आहार ऐसा है कि सभी वाक्य तो ध्यान में रहेंगे नहीं! प्रश्नकर्ता : कैसा निश्चय करना चाहिए? । दादाश्री : हमने जो निश्चय किया हो, उसी तरफ जा सकते हैं। आत्मा अनंत शक्ति स्वरूप है, वह शक्ति प्रकट हो जाएगी। आत्मा निश्चय स्वरूप है, और आपके निश्चय करने की ज़रूरत है। डगमग डगमग नहीं चलेगा! एक ही स्ट्रोंग अभिप्राय जिंदगी भर त्याग करवाता है! अभिप्राय थोड़ा सा भी कच्चा रह जाए तो उससे क्या होगा? जब कर्म के उदय आएँगे तो फिर इंसान का कुछ भी नहीं चलेगा, फिर वह स्लिप हो जाएगा। अरे, शादी तक
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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