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________________ दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से (खं-2-२) ९७ विषय में 'छिपी हुई रुचि' तो नहीं है न? विषय का विरेचन करनेवाली दवाई, वर्ल्ड में कोई भी नहीं है। अपना ज्ञान ऐसा है कि विषय का विरेचन हो जाता है। अंदर विचार आया और वह अवस्था खड़ी हुई, कि तुरंत ही उसकी आहुति दे दी जाती है। सिर्फ यह विषय ही ऐसा है कि निरे कपट का ही संग्रहस्थान है न! जिसमें अनंत दोष लगते हैं और कितने ही जन्म बिगाड़ देता है! यदि विषय हो तो वे एकदम से चले नहीं जाएँगे। लेकिन उससे तंग आ जाए और उसका प्रतिक्रमण करता रहे तो हल आ जाएगा। प्रतिक्रमण किसे कहते हैं कि दाग़ लगा कि तुरंत धो देना। उसे प्रतिक्रमण कहते हैं। इस दाग़ को क्यों धोते हो? क्योंकि वह क्रमण नहीं है, यह अतिक्रमण है। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करो और वह 'शूट ऑन साइट' होना चाहिए। अक्रम विज्ञान का प्रतिक्रमण 'शूट ऑन साइट' है। वर्ना ये लफड़े छूटेंगे ही नहीं न?! एकावतारी होना है, लेकिन ये लफड़े कब छूटेंगे? 'शूट ऑन साइट' प्रतिक्रमण से छूटा जा सकता है। विषय का प्रतिक्रमण रविवार को पूरा दिन करता रहे, तो बाद में छः दिन तक विषय की बात खड़ी हो, उससे पहले ही प्रतिक्रमण उसे घेर लेंगे। अंदर विषय तो खड़े होंगे, लेकिन प्रतिक्रमण का ऐसा ज़ोर रखना कि प्रतिक्रमण के सभी पुलिस (सिपाही) उसे घेर लें। प्रश्नकर्ता : जैसे-जैसे हम प्रतिक्रमण करेंगे, वैसे-वैसे विषय कम होगा न? दादाश्री : हाँ, प्रतिक्रमण करने से कम होता जाएगा। प्रतिक्रमण करता तो है, लेकिन अंदर विषय की रुचि रहा करती है। उसका खुद को पता नहीं चलता। वह रुचि बिल्कुल भी नहीं रहनी चाहिए। अरुचि उत्पन्न होनी चाहिए। अरुचि मतलब तिरस्कार नहीं, लेकिन इसमें कुछ है ही नहीं ऐसा होना चाहिए।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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