SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : अंदर जो रुचि पड़ी हुई है, उसका क्यों पता नहीं चलता? दादाश्री : वह इतना ज़्यादा आवरण है कि उसका पता ही नहीं चल पाता। प्रश्नकर्ता : लेकिन यों तो ऐसा लगता है कि मुझे तो यह विषय भोगना ही नहीं है। दादाश्री : वह तो ऐसा लगता है, लेकिन वह सब शाब्दिक है। अभी अंदर जो रुचि है, वह गई नहीं है। रुचि का बीज अंदर है, धीरे-धीरे वह तुझे समझ में आएगा। जो डेवेलप्ड इंसान है, उसे समझ में आ जाता है। प्रश्नकर्ता : क्षत्रिय को विषय के सामने क्षत्रियपना नहीं आ जाता? दादाश्री : आता है न! लेकिन विषय में क्षत्रियपना आ पाए, ऐसा नहीं है। क्षत्रियपना होता, तब तो उसे काट देने को कहते, लेकिन यह विषय वह समझने का विषय (सब्जेक्ट) है। इसलिए बहुत सोचने और समझने पर विषय जाता है। इसलिए विषय से छूटने के लिए मैंने ये तीन विज़न बताए हैं न? फिर उसे राग नहीं होता न! वर्ना यदि स्त्री ने यों अच्छे गहने और अच्छे कपड़े पहने हो तो सबकुछ भूल जाता है और मोह उत्पन्न हो जाता प्रश्नकर्ता : अभी भी अंदर से विषय में रुचि है, फिर भी पता नहीं चलता कि रुचि है या नहीं। दादाश्री : इतना जान लिया, वह भी अच्छा है। प्रश्नकर्ता : विषयों में जो इन्टरेस्ट उत्पन्न होता है, वह रुचि पड़ी है, उसके आधार पर उत्पन्न होता है? दादाश्री : हाँ। रुचि नहीं हो तो कुछ नहीं होगा। अरुचिवाली
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy