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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : हाँ, पुद्गल तो है, लेकिन कैसा पुद्गल? यदि सिर्फ सोने से बना होता तो दुर्गंध नहीं आती, हाथ नहीं बिगड़ते, कुछ भी नहीं, लेकिन यह तो सुंदर चादर से पोटली बाँधी हुई है, इसलिए कितना फँसाव हो गया है। उसी का नाम मोह है न! जो है वह दिखता नहीं है और जो नहीं है, वह दिखता है! निर्मोही कौन? ज्ञानीपुरुष । उन्हें जैसा है वही दिखता है! आरपार अंदर, हड्डियाँ-वड्डियाँ, आंतें-वांतें सबकुछ दिखता है, यों ही सहज स्वभाव से सबकुछ दिखता है। ९६ प्रश्नकर्ता : उस तरह की दृष्टि होगी तो फिर आकर्षण रहेगा ही नहीं न? दादाश्री : इस संडास को देखते हैं, तब वहाँ पर क्या कभी आकर्षण होता है ? देखते ही मूर्छित हो जाए तो, वह इसलिए कि पिछले जन्म का मोह छप गया है। यह चमड़ी से ढका हुआ मांस ही है। लेकिन ऐसा रहता नहीं है न! जिन्हें मूर्च्छा नहीं होती, उन्हें वह जागृति रहती है। जैसा है वही दिखे, उसी को जागृति कहते हैं ! केवल शुद्धात्मा के दर्शन करने जैसा है, बाकी का सब तो रेशमी चादर से लपेटा हुआ मांस ही है! हमारी आज्ञा का पालन करोगे तो तुम्हारा मोह जाएगा। मोह को तुम खुद निकालने जाओगे तो वही तुम्हें निकाल दे, ऐसा है! इसलिए उसे निकालने की बजाय उससे कहना, 'बैठिए साहब, हम आपकी पूजा करेंगे!' फिर अलग होकर तुमने उस पर उपयोग रखा और दादा की आज्ञा में आ गए तो मोह को तुरंत अपने आप जाना ही पड़ेगा। फिर मोह खुद ही कहेगा कि, 'अपना तो इधर कुछ भी नहीं चलेगा, इधर दादा का साम्राज्य हो गया है, अब अपना कुछ नहीं चलेगा!' तो मोह सभी बोरिया-बिस्तर समेटकर चला जाएगा। बाकी और किसी भी तरीके से मोह को कोई निकाल नहीं सका है। वह तो मोहराजा कहलाता है !
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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