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________________ 'ज्ञानी' कृपा से ही प्राप्ति' प्रश्नकर्ता : आपने जो अक्रम मार्ग कहा, वह आपके जैसे 'ज्ञानी' के लिए ठीक है, सरल है। लेकिन हमारे जैसे सामान्य, संसार में रहनेवाले, काम करनेवाले लोगों के लिए वह मुश्किल है। तो उसके लिए क्या उपाय है? दादाश्री : 'ज्ञानीपुरुष' के यहाँ भगवान प्रकट हो चुके होते हैं, चौदह लोक के नाथ प्रकट हो चुके होते हैं, वैसे 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ तो क्या बाकी रहेगा? आपकी शक्ति से नहीं करना है। उनकी कृपा से होता है। कृपा से सबकुछ ही बदल जाता है। इसलिए यहाँ तो जो आप माँगो वह सारा ही हिसाब पूरा होता है। आपको कुछ भी नहीं करना है। आपको तो 'ज्ञानीपुरुष' की आज्ञा में ही रहना है। यह तो 'अक्रम विज्ञान' है। यानी प्रत्यक्ष भगवान के पास से काम निकाल लेना है और वह आपको प्रतिक्षण रहता है, घंटे-दो घंटे ही नहीं। प्रश्नकर्ता : यानी उन्हें सब सौंप दिया हो, तो वे ही सब करते हैं? दादाश्री : वे ही सब करेंगे, आपको कुछ भी नहीं करना है। करने से तो कर्म बंधेगे। आपको तो सिर्फ लिफ्ट में बैठना है। लिफ्ट में पाँच आज्ञाएँ पालनी हैं। लिफ्ट में बैठने के बाद भीतर उछलकूद मत करना, हाथ बाहर मत निकालना, इतना ही आपको करना है। कभी ही ऐसा मार्ग निकलता है, वह पुण्यशालियों के लिए ही है। वर्ल्ड का यह ग्यारहवाँ आश्चर्य कहलाता है! अपवाद में जिसे टिकिट मिल गई, उसका काम हो गया। अक्रम मार्ग जारी है इसमें मेरा हेतु तो इतना ही है कि 'मैंने जो सुख प्राप्त किया, वह सुख आप भी प्राप्त करो।' अर्थात् ऐसा जो यह विज्ञान प्रकट हुआ है, वह यों ही दब जानेवाला नहीं है। हम हमारे पीछे ज्ञानियों की वंशावली छोड़ जाएँगे। हमारे उत्तराधिकारी छोड़ जाएंगे और उसके बाद ज्ञानियों की लिंक चालू रहेगी। इसलिए सजीवन मूर्ति खोजना। उसके बगैर हल निकलनेवाला नहीं है।
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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