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________________ मैं तो कुछ लोगों को अपने हाथों सिद्धि प्रदान करने वाला हूँ। पीछे कोई चाहिए कि नहीं चाहिए? पीछेवालों लोगों को मार्ग तो चाहिए न? ९. ज्ञानविधि क्या है? प्रश्नकर्ता : आपकी ज्ञानविधि क्या है? दादाश्री : ज्ञानविधि तो सेपरेशन ( अलग) करना है, पुद्गल (अनात्मा) और आत्मा का ! शुद्ध चेतन और पुद्गल दोनों का सेपरेशन । प्रश्नकर्ता : यह सिद्धांत तो ठीक ही है लेकिन उसकी पद्धति क्या है, वह जानना है। I दादाश्री : इसमें लेने-देने जैसा कुछ होता नहीं है, केवल यहाँ बैठकर यह जैसा है वैसा बोलने की जरूरत है ('मैं कौन हूँ' उसकी पहचान, ज्ञान कराना, दो घंटे का ज्ञानप्रयोग होता है । उसमें अड़तालीस मिनिट आत्मा - अनात्मा का भेद करनेवाले भेदविज्ञान के वाक्य बुलवाए जाते हैं। जो सभी को समूह में बोलने होते हैं। उसके बाद एक घंटे में पाँच आज्ञाएँ उदाहरण देकर विस्तारपूर्वक समझाई जाती हैं, कि अब बाकी का जीवन कैसे व्यतीत करना कि जिससे नए कर्म नहीं बँधें और पुराने कर्म पूर्णतया खत्म हो जाएँ, साथ ही 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का लक्ष्य हमेशा रहा करे!) १०. ज्ञानविधि में क्या होता है? हम ज्ञान देते हैं, उससे कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं और उस समय कई आवरण टूट जाते हैं। तब भगवान की कृपा होती है और साथ वह खुद जागृत हो जाता है। जागने के पश्चात वह जागृति जाती नहीं है। फिर निरंतर जागृत रह सकते हैं। यानी निरंतर प्रतीति रहेगी ही । आत्मा का अनुभव हुआ यानी देहाध्यास छूट गया। देहाध्यास छूट गया यानी कर्मबँध ने भी बंद हो गए। पहली मुक्ति अज्ञान से होती है। फिर एक दो जन्मों में अंतिम मुक्ति मिल जाती है। कर्म भस्मीभूत होते हैं ज्ञानाग्नि से जिस दिन यह 'ज्ञान' देते हैं उस दिन क्या होता है? ज्ञानाग्नि से उसके १८
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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