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________________ या नहीं होना चाहिए? उसका प्रमाण यानी क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हों, आर्तध्यान-रौद्रध्यान नहीं हों। तब फिर पूरा काम हो गया न? अक्रम सरलता से कराए आत्मानुभूति क्रमिक मार्ग में तो कितना अधिक प्रयत्न करने पर आत्मा है ऐसा ध्यान आता है, वह भी बहुत अस्पष्ट और लक्ष्य तो बैठता ही नहीं। उसे लक्ष्य में रखना पड़ता है कि आत्मा ऐसा है। और आपको तो अक्रम मार्ग में सीधा आत्मानुभव ही हो जाता है। सिर दुःखे, भूख लगे, बाहर भले ही कितनी भी मुश्किलें आएँ, लेकिन अंदर की शाता (सुख परिणाम) नहीं जाती, उसे आत्मानुभव कहा है। आत्मानुभव तो दुःख को भी सुख में बदल देता है और मिथ्यात्वी को तो सुख में भी दुःख महसूस होता है। ___ यह अक्रम विज्ञान है इसलिए इतनी जल्दी समकित हो जाता है, यह तो बहुत ही उच्च प्रकार का विज्ञान है। आत्मा और अनात्मा के बीच यानी आपकी और पराई चीज़ दोनों का विभाजन कर देते हैं, कि यह आपका है और यह आपका नहीं है, दोनों के बीच में विदिन वन अवर (मात्र एक ही घंटे में) लाइन ऑफ डिर्माकेशन (भेदरेखा) डाल देता हूँ। आप खुद मेहनत करके करने जाओगे तो लाख जन्मों में भी ठिकाना नहीं पड़ेगा। मुझे' मिला वही अधिकारी प्रश्नकर्ता : यह मार्ग इतना आसान है, तो फिर कोई अधिकार (पात्रता) जैसा देखना ही नहीं? हर किसी के लिए यह संभव है? दादाश्री : लोग मुझे पूछते है कि, मैं अधिकारी (पात्र) हूँ क्या? तब मैंने कहा, 'मुझे मिला, इसलिए तू अधिकारी।' यह मिलना, तो सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है इसके पीछे। इसलिए हमें जो कोई मिला, उसे अधिकारी समझा जाता है। वह किस आधार पर मिलता है? वह अधिकारी है, इसी वजह से तो मुझसे मिलता है। मुझसे मिलने पर भी यदि उसे प्राप्ति नहीं होती, तो फिर उसका अंतराय कर्म बाधक है। १५
SR No.030102
Book TitleAatmsakshatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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