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________________ रात को ग्यारह बजे मेहमान आएँ तो उन्हें देखते ही ‘आइए पधारिए कहते हैं' लेकिन तुरंत अंदर क्या हो जाता है ? 'कहाँ से आ गए मुए?' तो वह जो ‘आइए पधारिए' कहा, वह नोकर्म है 'अभी कहाँ से आ गए मुए ? ' तो वह भावकर्म है। नोकर्म खुले रूप से दिखाई देते हैं और 'अभी कहाँ से आया मुआ?' ऐसा अंदर हुआ तो वह कपट किया । अतः वह माया हुई । इसलिए वह भावकर्म में आता है और अंदर अच्छा भाव रहे तो भी वह भावकर्म है। शुभ और अशुभ भाव दोनों ही भावकर्म हैं। 'कहाँ से आए मुए' कहा तो उसका फल अगले जन्म में मिलता है। कुत्ता बनकर पूरे दिन आनेवालों पर भोंकता रहता है । लोग 'कहाँ से आया मुए' कहकर निकाल देते हैं । I भावकर्म वह भ्रांत पुरुषार्थ है । फिर चाहे शुभ हो या अशुभ, दोनों ही (भ्रांत पुरुषार्थ) हैं, जबकि रियल पुरुषार्थ ज्ञान के अधीन होता है और देह की सभी क्रियाएँ नोकर्म हैं । निकाचित कर्म भी नोकर्म हैं। वाणी क्या है? वह द्रव्यकर्म है । मूल परमाणु द्रव्यकर्म के हैं और यहाँ से बाहर खिंचकर जिस स्वरूप में निकलती है, वह नोकर्म है । कोड वर्ड और उसके बाद जो शॉर्ट हेन्ड है, वह द्रव्यकर्म है और जो बाहर निकली, वह नोकर्म है । विचार नोकर्म हैं लेकिन मन की जो ग्रंथि है, वह द्रव्यकर्म है । चित्तअहंकार-बुद्धि वगैरह द्रव्यकर्म हैं लेकिन जब उनका उपयोग होना शुरू होता है, तब वे नोकर्म हैं । प्रयोगसा द्रव्यकर्म से पहले हो जाता है । जो विश्रसा (शुद्ध) परमाणु थे, जब बोलना शुरू करते हैं तो हमारे अंदर भाव करते ही वे परमाणु घुस जाते हैं, वह है प्रयोगसा । फिर मिश्रसा होने में देर लगती है । मिश्रसा होते समय वह द्रव्यकर्म कहलाता है । बाद में द्रव्यकर्म वापस उदय में आते हैं। 1 दृष्टि उल्टी होने से भावकर्म की शुरुआत हुई, विशेष भाव हुआ, स्वभाव भाव नहीं। उसके बाद आगे जाकर 'मैं कर रहा हूँ' वह भी भावकर्म है । कषाय का समता भाव से निकाल कर लें तो नया चार्ज नहीं होता । 60
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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