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________________ ३८४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : फिर आप्तसूत्र ४२२७ में दादा कहते हैं कि "जब से हम ज्ञाता-ज्ञेय के संबंध में आए, तब से ज्ञेय शुद्ध होते ही जाते हैं। जिस ज्ञेय का निकाल हो गया, वह वापस नहीं आएगा क्योंकि शुद्ध होकर उनका निकाल हो गया। इसलिए वे अब तत्व रूपी हो गए !" यह समझाइए। दादाश्री : हम ज्ञाता-ज्ञेय के संबंध में आए, तभी से ज्ञेय शुद्ध होते ही जाते हैं। हम ज्ञाता-ज्ञेय में अर्थात् आप ज्ञाता और चंदूभाई ज्ञेय। अब जब से ज्ञाता-ज्ञेय के संबंध में आए, तभी से ज्ञेय अर्थात् चंदूभाई अर्थात् पुद्गल शुद्ध होते ही जाते हैं । वे शुद्ध होकर चले जाते हैं अपने आप ही और हमें शुद्ध कर जाते हैं, मुक्त करते हैं। ___'जिस ज्ञेय का निकाल हो गया, वह फिर से नहीं आएगा।' अज्ञान से बाँधे हुए कर्मों का ज्ञान से निकाल किया, वे वापस नहीं आएँगे क्योंकि शुद्ध होकर उनका निकाल हो गया। शुद्ध होकर अर्थात् तत्व स्वरूप हो गए। प्रश्नकर्ता : फिर आप्तसूत्र ४२२६ में कहते हैं कि "जब यह आत्मा तत्व स्वरूप दिखेगा, तब बाकी के सभी तत्व भी दिखाई देंगे। वास्तविक ज्ञेय तत्व स्वरूप हैं और तत्व स्वरूप ज्ञेय 'केवलज्ञान' के बिना नहीं दिख सकते। लेकिन श्रद्धा में आ गया तो केवलज्ञान में आएगा ही। ज्ञाताभाव निकल गया अर्थात् एक्स्ट्रेक्ट निकल गया।" वह समझाइए। दादाश्री : तत्व स्वरूपी ज्ञेय केवलज्ञान के बिना नहीं देखा जा सकता। उसी को केवलज्ञान कहते हैं न! लेकिन श्रद्धा में आ जाए तब केवलज्ञान में आता है। पहले श्रद्धा में आता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन तत्व स्वरूप ज्ञेय क्या कहलाते हैं? दादाश्री : तत्व स्वरूप से ज्ञेय अर्थात् ये छः तत्व हैं न! इन्हें जो जानना है, वह ज्ञेय के रूप में जानना है, तो वह केवलज्ञान के बिना नहीं दिखाई दे सकता। प्रश्नकर्ता : छः के छः तत्व? दादाश्री : हाँ। ये जो छः तत्व हैं, वे अविनाशी हैं। तत्व सभी
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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