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________________ [४] ज्ञाता-दृष्टा, ज्ञायक आप ज्ञाता बन जाएँगे। भगवान का ऐसा कहना है कि जिसे अभी तक आप 'मैं चंदूभाई हूँ और मैं ज्ञाता हूँ' ऐसा जानपना मान लिया है, उसे जब ज्ञेय के रूप में समझेंगे, तब आप वास्तव में ज्ञाता बन जाओगे। ३८३ भगवान वीतराग थे, और वीतरागी बात है इसीलिए बिल्कुल साफ बात कही थी। दीये जैसी ! फिर शब्दों का क्रम अलग-अलग प्रकार का हो सकता है, लेकिन बात एक ही है ! ज्ञेय के प्रकार हैं दो प्रश्नकर्ता : आप्तसूत्र ४२२६ में लिखा है कि 'दो प्रकार के ज्ञेय हैं, एक अवस्था रूपी हैं और एक तत्व रूपी ज्ञेय हैं । तत्व स्वरूप के बारे में अभी आपको समझ में नहीं आएगा । (१) ज्ञाताभाव ज्ञेयभाव से दिखाई दे तब खुद के स्वभाव में समाविष्ट होता है । (२) ज्ञेय में जो ममत्व था, वह छूट गया और जैसे-जैसे ज्ञेय को ज्ञेय के रूप में देखे, वैसे-वैसे आत्म पुष्टि होती जाती है।' यह समझाइए । दादाश्री : दो प्रकार के ज्ञेय हैं। एक अवस्था स्वरूप से हैं और एक ज्ञेय तत्व स्वरूप से हैं । अवस्था स्वरूप से सभी विनाशी होते हैं, तत्व स्वरूप से अवनाशी होते हैं । ज्ञाताभाव अज्ञानी के लिए लिखा गया है। अज्ञानी व्यक्ति में 'मैं' ही ज्ञाताभाव है। जो यह कहता है कि मैं जानता हूँ, वह यदि ज्ञेय के रूप में दिखाई दे, तब वह खुद के स्वभाव में समाविष्ट होगा। अपने सभी महात्माओं को ज्ञेयभाव से दिखाई देता है। पहले चंदूभाई देखते थे और अब चंदूभाई ज्ञेय बन गए और आप ज्ञाता बन गए। पहले आप ही चंदूभाई और आप ही ज्ञाता थे। ज्ञेयभाव से ज्ञाताभाव दिखाई दे, तब खुद के स्वभाव में समावेश होता है। अर्थात् स्वभाव में आ गए। फिर ज्ञेय में जो ममत्वपना था, वह छूट गया । जैसे-जैसे ज्ञेय को ज्ञेय के रूप में देखें वैसे-वैसे आत्मपुष्टि होती है। 'मैं' और 'मेरा' जो था वह छूट गया। अब इस ज्ञेय को ज्ञेय के रूप में ही दिखाई देता है । अर्थात् इस पुद्गल को देखते रहना है ताकि आत्म पुष्टि होती रहे ।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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